________________ सुमित्र चरित्रम् तव चित्तं हृतं राजन् / यया दूरस्थयापि सा // मयावश्यं समानीया / ललना लोललोचना // 21 // | अर्थ- हे राजन् ! दूर रह्या छतां पण जे स्त्रीए तमारा चित्तने हरण कयु छे ते चपळ लोचनवाळी स्त्रीने हुँ अवश्य अहीं लइ | आवीश. / / 21 // 46 // सोचे शक्त्या च भक्त्या च / मेलनीया त्वया प्रभो // उक्त्वेति नृपतेर्हस्ता-हीटकं जगृहे तया // 22 // ____ अर्थ-हे स्वामिन् ! शक्तिथी तेमज भक्तिथी तमने ते स्त्री हुँ मेळवी आपीश.' आ प्रमाणे कहीने तेणे राजाना हाथर्नु बीईं। ग्रहण कयु. // 22 // कार्यादौ सेवकाः स्तुत्या / इति नीति विचार्य तां // स्तुत्वा मुखाग्रतोऽत्यंतं / कार्यार्थी विससर्ज सः // 23 // . अर्थ-ते वखते ' सेवकोनी कार्यना मारंभमांज प्रशंसा करवी.' ए नीतिने अनुसरीने राजाए स्वमुखे तेनी खूब प्रशंसा करीने | नतेने रजा आपी. // 23 // इतः सा गणिका नद्या / ऊर्ध्वभागे निरंतरं // व्रजंती दूरतोऽगच्छ-त्पश्यंती वनपर्वतान् // 24 // _अर्थ-हवे ते गणिका नदीना उपरना भाग तरफ चालवा लागो. ए प्रमाणे निरंतर चालतां घणे दूर गइ, घणा वन पर्वतोने जोया. तत्रैव निम्नगासन्न-पुरोधाने मनोरमे // सापश्यदंपती तो तु / क्रीडारसपरायणो // 25 // / अर्थ-ए प्रमाणे चालतां ते नदीनी नजीक रहेला एक नगरना सुंदर उद्यानमां आवी, त्यां क्रीडा रसमा परायण एवा दंपती (सुमित्र ने प्रियंगुमंजरो) ने तेणे जोया. तेने जोइने विस्मयथी व्याप्त थयेला मनवाळी ते वैरिणी क्षणमात्र तो विचारवा लागी के DOOOOOD GODDD @ DOODOOREE DDOOOOOOOOOOOOOGaनन // 46 // Jun Gun Aaradhaltrust PP.AC Gunratnasun M.S.