________________ सुमित्र चरित्रम् // 89 // नन्वस्माभिः कथं कूप-मंडुकैरिव नित्यशः // स्थीयतेऽत्रैव नगरे / खागार इव कातरैः // 22 // __अर्थ-आपणे कुवाना देडकानी जेम निरंतर कायरपुरुष जेम पोताना घरमांज वेसी रहे तेम आ नगरमां शामाटे रहेवु ? // 29 // दृश्यते विविधाश्चर्य / विशेषो ज्ञायते द्वयोः // सदसजनयोः स्वात्मा / कल्यते क्रमणादवि // 30 // G ___ अर्थ-परदेश जबाथी अनेक प्रकारना आश्चर्यो जोइ शकाय अने सज्जन तेमज दुर्जनने पण ओळखी शकाय अने पृथ्वीपर भमवाथी आपणा आत्मानी पण किंमत आंकी शकाय. // 30 // यावत्स्वस्वपितः कार्य-भराक्रांता वयं न हि // निश्चिंताः कोतुकान्येव / पश्यामः किं न भूतले // 31 // .. अर्थ-ज्यां सुधी आपणे पोतपोताना पिताना कार्यभारथी आक्रांत थया नथी अर्थात् ते बोजो आपणा उपर आवी पडयो नथी त्यां सुधीमा निश्चिंत एवा आपणे पृथ्वीपर रहेला कौतुको शामाटे न जोइए ? // 31 // विमृश्येति पुनः प्रोचु-स्त्रयोऽन्ये भूपजंप्रति // कुमार न त्वया कार्या / चिंता कापि स्वचेतसि // 32 // ___अर्थ-आ प्रमाणे विचारीने वीजा त्रणेए राजपुत्रने का के-' हे कुमार ! तमारे पोताना चित्तमा काइपण चिंता न करवी,३२। | यतस्तव वयं भृत्याः / स्वकलाभिरताः सदा॥ अर्जितेर्वस्तुभिर्भक्तिं / करिष्यामोऽदनादिकां // 33 // ____ अर्थ-कारण के अमे बणे तमारा सेतकरुप थइने अमारी कळामां सदा रक्त छता तेनावडे उपार्जन करेली वस्तुओथी तमारी खानपान विगेरेनी भक्ति करशु,' // 33 // P.P.Ar Gunratnasun MS Jun Gun Aaradhak Trust