________________ चरित्रम् सुमित्र // 20 // दूरं देशं जगामासा-वेकत्र रणभूमिषु // तत्कालजातयुद्धासु / रुधिरैः पूरितासु च // 94 // अर्थ-ए प्रमाणे घणा दूर देशमां गमन करतां एक जग्याए तरतमांज युद्ध थयेली रणभूमि जोइ. ते रुधिरवडे पथरायेली हती. संकुलासु रुलटुंड-मुंडहस्तपदादिभिः // शृगालगृध्रप्रमुखै-ाप्यमानासु तत्क्षणं // 95 // अर्थ-चोतरफ कपाइ गयेला हाथ, पग, शरीर अने मस्तकोबडे व्याप्त हती, तेमज शीयाळ अने गीध वगेरे पक्षीओ त्यां फरी रह्या हता. / / 95 // धौतवस्त्रावृतं यज्ञो-पवीतवरविग्रहं // सविशेष कृतस्नानं / दर्भमुद्रांकितांगुलीं॥ 96 // अर्थ-तेवी रणभूमिमां धोयेला वस्त्र पहेरेलो, यज्ञोपवीत धारण करेला श्रेष्ठ शरीरवाळो, सविशेष स्नान करेलो, दर्भनी मद्राओवडे अंकित आंगळीओवाळो // 96 // मृतानां रुंडमुंडानि / चालयंतमितस्ततः // पश्यतिम द्विजं कंचि-कच्छे कर्कटिका इव // 97 // अर्थ-कोइ द्विज मरण पामेला मनुष्योना रुंडमुंडोने आमतेम फेरवतो ने जोतो नाना जळाशयमा रहेला करचलानी जेवो 'तेमणे दीठो. // 97 / / . अपवित्र स्थले विप्र / किं करोष्यत्र कुत्सितं / इदृकर्माधमजन-योग्यमचे स तंप्रति // 98 // अर्थ-तेने ए प्रमाणे करतो जोइने सुमित्रे पूछयु के-'हे विप्र ! आवा अपवित्र स्थळे अधम जनोने योग्य एवं कुत्सित कार्य PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust