________________ समित्र // 37 // तदाहं मारयिष्यामि / भद्रे त्वां यदि यास्यसि // अतस्त्वया न गंतव्यं / न कर्तव्यं भयं पुनः // 1 // ___अर्थ-जो तुं भागी जइश तो हु तने मारी नाखीश; तेथी तारे भागी जवू नहीं अने मारो भय पण राखवो नहीं. // 1 // किंच लग्ने शभेऽत्र त्वां। परिणेष्याम्यहं मुदा // अनिच्छंतीमपीत्युक्त्वा / मामरक्षवलाच सः // 82 // / अर्थ - हुँ तने शुभ लग्न समये अहींज हर्षवडे परणीश. आ प्रमाणे कहीने तेने नहीं इच्छती एवी मने तेणे बलात्कारे अहीं राखी. - तुंबकस्थांजनेनासौ / याति कृत्वा बिडालिकां // मामन्यतुंबकस्थेन / करोत्यागत्य तादृशीं // 83 // . अर्थ-ते आ एक तुंबमांहेना अंजनवडे मने वीलाही बनावीने जाय छे अने वीजा तुंबना अंजनवडे पाछो आवे छे त्यारे मने कन्या बनावे छे. // 83 // | एवं स्थिते दिने कापि | पलादो याति सोऽनिशं // निश्यायाति पुनाँति / ममैवं वासरा इह // 4 // ' अर्थ-आ प्रमाणेनी मारी स्थिति, छे. ते राक्षस दररोज दिवसे कोइपण स्थळे जाय छे अने रात्रे पाछो आवे छे. आ प्रमाणे मारा दिवसो व्यतिक्रमे छे. // 84 // एकदा समया-प्रष्टः कस्त्वं देवो नरोऽथवा // सोऽवोचत् शृणु वैताढये / पुरे श्रीमणिमंदिरे॥८५।। अर्थ-एक दिवस में तेने पूज्यु के-'तमे कोण छो? देव छो के मनुष्य छो ?' ते बोल्यो के-"सांभळ ! वैताढ्य पर्वत | उपरना मणिमंदिर नामना नंगरनो // 85 // . . ... .. // 37 // P.P.Aa Gunratnasur M.S Jun.Gun Aaradhak Trust