________________ समित चरित्रम् 51 // DACODODDOGOPEEDEDDDDEED इत्युत्क्वा तत्क्षणादेत्य / लगित्वा कंठकंदले // पितृस्वसुः सुमित्रस्त्री। रुदत्येवमभाषत // 48 // ___अर्थ-आम कही तत्क्षण पोतानी फइबाने गळे वळगीने सुमित्रनी स्त्री रोवा लागी अने बोली के- // 48 // हा जाता दारुणावस्था / तवापि कथमीहशी // दोषोऽथवा विधेरेव / यत्सतां विपदागमः॥४९॥ ____ अर्थ-हा इति खेदे ! तमारी पण आवी दारुण अवस्था केम थइ ? परंतु एमां विधिनोज दोष छे के जे सज्जनोने विपत्तिमां नानाखे छे. // 49 // |सापि कूटकुटी प्राह / वत्से ब्रहि शुभाशये // कनकध्वजजातासि / प्रोवाचामनपांगजा // 50 // ___अर्थ-गणिका पण अत्यंत कपटभावथो बोली के-'हे वत्से ! हे शुभाशये ! तुं कनकध्वजनो पुत्री छे ए वात मने सत्य कहे ? प्रियंगुमंजरीए हा पाडी / / 50 // श्रुत्वेति प्रोच्छलच्छोका-मेतामालिंग्य वैरिणीं // रुरोद रोदसीकुक्षि-भरिभूध्रप्रतिस्वनः॥५१॥ अर्थ-एटले ते सांभळीने जाणे अत्यंत शोक उत्पन्न थयो होय तेम ते वैरिणी पोताना रुदनना स्वरवडे आकाशने भरी देती - सती अत्यत रुदन करवा लागी. // 51 // महा भ्रातृजे तवापीह / मदार्तिकं दुर्दशाभवत् // क्व मे भ्राता गुणैः ख्यातो। नाम्ना श्रीकनकध्वजः / 52| . अर्थ-पछी ते बोली के-'हे भत्रीजी ! मारी जेम तारी पण दुर्दशा केम थइ ? अरे ! अरे ! कनकध्वज नामनो गुणधी प्रसिद्ध एवो मारो बंधु क्यां? // 52 // // 51 // P.P. Ac Gunratrasuri MS. Jun Gun Aaradhak Trust