________________ समित्र चरित्रम् सार्थपस्तंप्रति प्रोचे / कः साक्षी सोऽवदत्पुनः // साक्षिकः स्थपने नान्यः। स एव परमेश्वरः // 49 // | अर्थ-सार्थपतिए कयु के-'तेनो साक्षी कोण छे ?' धूर्त बोल्यो के-'छानी थापण मूकवामां साक्षी कोण होय ? साक्षी तो एक परमेश्वर छे.' // 49 // एवं वदंतो केनापि / तावभंगरविग्रहो। राजसंसदि संप्राप्तौ / षण्माषानंतरं ततः॥५०॥ अर्थ-आ प्रमाणे तेओनो विवाद छ मास चाल्यो पण कोइ तेनो विग्रह मटाडी शक्यु नहीं तेथी तेओ राजसभामां गया.५०। दृष्ट्वा तौ स तयाभूतौ / राजामात्यान् समादिशत् // कलहो भज्यतां शीघ्रं / भवद्भिर्बुद्धिशालिभिः // 51 // अर्थ-ते बनेनी उपर प्रमाणेनी बातो सांभळीने राजाए अमात्योने का के-'तमारे बुद्धिशाळीओए आनो कलह शीघ्र भांगी नाखवो.' // 51 // मिलितैर्मत्रिभिरग्र-मतिभिर्नानयोरयं // बहुभिर्वासरैरेवं / विवादो विलयं ययौ // 52 // / अर्थ-पछी बधा मंत्रीओ एकठा मळया अने ते बुद्धिशाळीओए घणा दिवस मुधी आ बाबतनो विचार कर्यो परंतु तेनो विग्रह मटाडी शक्या नहि. // 52 // अतोऽयायं नृपादेशा-द्वाद्यमानोऽस्ति सर्वतः // योऽनयोर्वादमागत्य / भनक्ति स्वमनीषया // 53 // मंत्रिभ्यो भूभुजा तस्मै / उम्मलक्षं प्रदाप्यते / / इत्यर्थे निश्चयो ज्ञेय / इत्युद्घोषणपूर्वकं // 54 // PPAC Gunratnasuri MS. Jun Gun Andhak Trust