Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Harshkunjar Upadhyay
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 122
________________ सुमित्र चरित्रम् 121 // प्रेरयामासतुर्गत्वा / गत्वा धर्म सुतं स्वकं // व्यसनासेवनान्नित्यं / वारयामासतुः पुनः / / 92 // अर्थ-वारंवार पोताना राज्यमा जइने पोताना पुत्रने धर्ममा प्रेरणा करवा लाग्या अने व्यसनोना सेवनथी दूर राखवा लाग्या. - कृतार्थ मन्यमानः स्वं / गुरुशिक्षाभिरन्वहं // इंद्रदत्तो नरेंद्रोऽसो / धर्मे दृढतरोऽभवत् // 93 // ____ अर्थ-आ प्रमाणे पोताना गुरुतरीके मातापिताए आपेली शिक्षावडे पाताना आत्माने धन्य मानतो इंद्रदत्त राजा धर्ममा अत्यंत | दृढ थयो. / / 93 // श्रीसुमित्रोऽथ राजर्षिः / साध्वी प्रियंगुमंजरी // खड्गधारोपमं धीरौ / व्रतं पालयतःस्म तौ॥९४॥ ___अर्थ-सुमित्र राजर्षि अने मियंगुमंजरी साध्वी बने धैर्यताथी खड्गनी धारासमान चारित्रने पाळता-हता. // 94 // अथान्यदा व्रते स्थैर्य / मत्वा श्लाघां तयोर्भृशं // पुनः पुनः सुरवात-प्रत्यक्ष वासवो व्यधात् // 95 // अर्थ-अन्यदा तेमनु चारित्रमा स्थिरपणुं जोइने देवोनी समक्ष इंद्र वारंवार तेमनी अत्यंत प्रशंसा करवा लाग्या // 15 // तत्रैकोऽसहमानस्तां / साहंकारः समाययौ / क्षोभितौ बहधा तेन / मेरुवञ्चलितौ न तो॥ 96 // अर्थ-तेने नहीं सहन करतो कोइ मिथ्यात्वी देव त्यांथी अहंकारयुक्त थइने मनुष्यलोकमां आव्यो, तेणे अनेक प्रकारे चलाबवानों प्रयत्न कर्यों पण तेओं चल्या नहीं. // 96 // . . . .... .. ... ततोऽसौ प्रकटीभूय / चलत्कुंडलयामलः ॥क्षामयित्वा-प्रशंसां च / निगयेंद्रकृतां. ययो.॥ 97 // . // 121 // Ja PP Ac Gunratnasuri M.S Jun Gun Aaradhak Trust

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