Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Harshkunjar Upadhyay
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ समित्र // 114 अर्थ-आ संसारमा सुखनी झंखना करता सता पगले पगले दु खथी दग्ध थता जीवो पवने उडाडेला खाखराना पाननी जेम चोतरफ चारे गतीमां भमे छे. // 55 // जम चरित्रम् . कल्पद्रमिव कामार्थी। भवोद्विग्नो भवी हहा // न सेवते जिनादेशं / परत्रेह च सौख्यदं॥५६॥ - अर्थ-हा इति खेदे ! भव (संसार) थी उद्विग्न थयेला केटलाक भव्य जीवो पण कोई मूर्ख इच्छितनो अर्थी छतां कल्पवृक्षने न सेवे तेम आ लोकमां अने परलोकमां सुखने आपनार धर्मने-जिनेश्वरना आदेशने सेवता नथी. // 56 / / अस्मिन्नवसरे राजा / सुमित्रःप्रांजलीर्जगो॥ स्वामिन् किमु मयाकारि / देव्या च प्राच्यजन्मनि 57 ___अर्थ-ए अवसरे सुमित्र राजाए हाथ जोडीने पूछ्यु के-'हे स्वामिन् ! में अने पियंगुमंजरीए पूर्वभवमा शुं पुन्य कयु हतुं के येन साम्राज्यमीहक्ष-मावयोरभवत्पुनः॥ वैरिण्या च कृता जज्ञे / दुर्दशा दुःखदायिका // 58 // ___अर्थ-जेथी आवा साम्राज्यनी अमने प्राप्ति थइ, अने शुं पाप कर्यु हतुं के जेथी वैरिणी वेश्याए अमारी महादुःखदायक | दुर्दशा करी?' // 58 // गुरुः प्राह पुरा राजन् / ग्रामे सुग्रामनामनि // कुटुंबी क्षेमसारोऽभूत् / क्षेमश्रीस्तस्य गेहिनी // 59 / / . अर्थ-गुरुमहाराजे का के-'हे राजन् ! तारो पूर्वभव सांभळ? पूर्वे सुग्राम नामना गाममा क्षेमसार नामनो एक कुटुंबी वसतो तो. तेने क्षेमश्री नामे भार्या हती. // 59 // चत्वारि तस्य मित्राणि / सोमसोहडलक्ष्मणाः // भीमश्चेत्यभवन प्रीति–पयःपात्राणि नित्यशः // 6 // alm CHOIDDDDDDDDDDDDDDDDDD P.PAC Gunratnasun MS Jun Gun Aaradhak Trust

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