Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Harshkunjar Upadhyay
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ सुमित्र चरित्रम 105 // व अर्थ-त्यारे गुरुए कह्यु के-'हे राजन् ! तारे पूर्वभवमां उपार्जन करेला दानपुण्यना फळरूप नीकाचित भोगो भोगववाना हजु न बाकी छे. // 6 // | तेनावश्यं चिरं भोगा / देवानामपि दुर्लभाः // त्वया नरेंद्र भोक्तव्या। नाधुना व्रतयोग्यता // 7 // ____ अर्थ-देवोने पण दुर्लभ एवा भोगो तारे लांबा काळ सुधी भोगववाना छे, माटे सांपत काळे-हालमां चारित्र लेवानी तारी योग्यता नथी.' // 7 // |किं तेभोगसुखेः स्वामिन् / विषान्नानामिवोल्लसन् // दुर्विपाको भवेयेषां / पर्यंतपरितापिनां // 8 // ___अर्थ-राजाए का के-'हे स्वामिन् ! तेवा भोगो भोगववायी शुं के जे भोगो विपवाळा अन्ननी जेम खाधा पछी पर्यतपरि तापी एवा महा माठा विपाकने आपे. // 8 // a गुरुः पुनर्जगादेति / सत्यमुक्तं नृप त्वया // परं किं क्रियतेऽस्तीह / नामुक्तकमतश्छुटिः // 9 // यदुक्तं अर्थ-गुरुए कहा के-'हे नृप ! तमे सत्य कयु, परंतु केटलांक कर्मो एवां होय छे के जे भोगव्या सिवाय छुटको थतोज नथी. | कडुं छे के:-॥९॥ नाभुक्तं क्षीयते कर्म / कल्पकोटिशतैरपि // अवश्यमेव भोक्तव्यं / कृतं कर्म शुभाशुभं // 10 // ___ अर्थ-क्रोडोगमे वर्षों व्यतीत थइ जाय तो पण बांधेलु कर्म भोगव्या सिवाय क्षय पामतुं नथी. शुभ के अशुभ करेलुं कर्म अवश्य भोगवज पडे छे.' // 10 // . . . EDODDDDDDDDDDDDDDOOD / 105 // PP.AC.Gunratnasurt M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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