Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Harshkunjar Upadhyay
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 108
________________ सुमित्र चरित्रम् // 107 // अर्थ-पछी सुमित्रराजाए पृथ्वीपर हजारो जिनमंदिरो कराव्या के जे पोताना पुण्यपुंजनी जेवा उज्वळ तोरणोवाळा अने घणा उंचा हता. // 17 // | आहतीः स्थापयामास / प्रतिमास्तेषु लक्षशः // पूरिताः सुकृतैः स्वर्ण-निधानकलशोरिव // 18 // - अर्थ-ते मंदिरोमां लाखो जिनप्रतिमाओ तेणे स्थापन करी के जे सुकृतवडे भरेला सुवर्णना निधानरूप कळश जेवी हती. // चकार प्रतिवर्षं स / तीर्थयात्रादिकोत्सवान् // स्नात्रपूजां गरिष्टा -हच्चेत्यप्रकरेऽन्वहं // 19 // ___ अर्थ-प्रतिवर्ष ते राजा तीर्थयात्रादि महोत्सवो करतो हतो अने निरंतर अर्हत् चैत्यमां मोटी ऋद्धि साथे स्नात्र पूजा करतो हतो. चके साधर्मिकाः शुल्क-करमुक्त्या महीभुजा // तेन कोटीश्वराः सर्वे / मूलद्रव्यार्पणक्रयात् // 20 // __अर्थ-तेणे सर्वे साधर्मिकोने दाण विगेरेना करथी मुक्त कर्या तेथी मूळ द्रव्यथी मळेला करीयाणाओना क्रय-विक्रयथी घणा श्रावको कोटीश्वर थइ गया. // 20 // कुरुतेस्मोभयकाल-मावश्यकमिलापतिः // सद्भक्त्या सारशक्त्या च / त्रिसंध्यं जैनमर्चनं // 21 // अर्थ-राजा उभय काळ आवश्यक (प्रतिक्रमण) करे छे अने भक्ति तेमज शक्तिपूर्वक त्रणे काळ जिनार्चन करे छे. // 21 // प्रतिमासं लक्षभोज्यं / वर्षकोटिसुभोज्ययुक्॥ सुसाधर्मिकवात्सल्य-मकरोत्स नरेश्वरः // 22 // बा... अर्थ-दरमहीने लाखनुं अने दर वर्षे क्रोड साधर्मीओनुं वात्सल्य भोजन ते राजा करतो हवो. // 22 // ... // 107 // PP.AC.Gunratrnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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