Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Harshkunjar Upadhyay
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 103
________________ सुमित्र 02 DDEDEODEPEEDDEDODOOD ___अर्थ-माटे आपणे तो महापापने बंधावनाएं आ गामने वाळी देवारूप कार्य करवू नहीं.' आ प्रमाणे विचारी कोइक नजीकना खेतरमां घासना पुळानो संचय हतो ते बाली दीधो. // 94 // तस्मिन् पूलोच्चये कश्चिद्धाटिकाभयतः पुरा // हालिकस्तु प्रविष्टोऽभू-त्सोऽपि जज्वाल दैवतः // 15 // ___अर्थ-ते पुळानी गंजीमा कोइक हालिक घाटीना भयथी संताइ रह्यो हतो ते पण बळी गयो. // 95 // जीवोऽत्र हालिकस्तस्य / मृत्वाभूद् व्यंतरो यतः॥ जलाग्न्यादिमृतः सौम्य-भावाव्यंतरतां भजेत् / 96 / अर्थ-ते हालिकनो जीव मरण पामीने व्यंतर थयो. 'जळने अग्नियी मरण पामेला जीवो सौम्यभाववाळा होय छे तो ते . व्यंतर थाय छे.' / / 96 // चत्वारस्ते नृपामात्य-श्रेष्टयारक्षकसद्मसु // अवातरन् लसद्रूपा / बभूवुः पुण्ययोगतः // 97 // ____ अर्थ-पेला चार सेवको मरण पामीने राजा, अमात्य, श्रेष्ठी अने कोटवाळना पुत्रपणे जन्म्या. पुण्ययोगथी तेओ सुंदर रूप अने आकृतिवाळा थया. / / 97 // अर्थ-आजे कर्मयोगे ते चारेने आ सुंदर वृक्ष नीचे आवेला जोइने व्यंतरे // 98 // वधायावधिना मत्वा / तेषां च प्राच्यवैरिणां // सुवर्णपुरुषीभूय / प्रतियामं पपात सः॥ 99 // अर्थ-अवधिज्ञानवडे तेने पूर्वभवना वैरी जाणीने तेमना वधने माटे चार स्वर्णपुरुष थइने दरेक पहोरे ते व्यंतर पड्यो.।९९ -102 / / PPA Gunthasur MS

Loading...

Page Navigation
1 ... 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126