Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Harshkunjar Upadhyay
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 101
________________ सुमित्र चरित्रम् // 10 // पुरुषनी प्राप्ति थइ छे, // 83 // ज्ञात्वैतत्क्षत्रियावेतौ / मैत्र्यभावाहलादपि // भागं हरिष्यतस्तस्मा-धो युक्तोऽनयोरिह // 4 // ___अर्थ-ते जो आपणा क्षत्रिय मित्रो जणशे तो ते मैत्रीभावथी वळात्कारे भाग पडावशे, माटे एने मारी नाखवा एज युक्त छे.' चिंतयित्वेति संगृह्या-नपानं विषमिश्रितं // कृत्वायांतौ हतौ वृक्षां-तरिताभ्यामिह क्षणात // 85 // ___अर्थ-आम विचारीने तेओ अन्नने विपमिश्रित करीने लाव्या. ते आगळ आव्या एटले वृक्षना मूळ पासे संताइ रहेला बे जणाए ते बन्नेने मारी नाख्या. // 85 // अन्नादिकमजानानौ / क्षत्रियौ तौ विषाविलं / / तत्रैव हि क्षुधाक्रांतौ / भुक्त्वा पंचत्वमापतुः॥८६॥ अर्थ-पछी लावेलं अन्नादि विषमिश्रित छे एम न जाणवाथी ते बने क्षत्रियोए क्षुधाक्रांत होवाथी खावू जेथी तेओ पण त्यांज मरण पाम्या. / / 86 // इतो नंदीश्वरे यात्रां। कृत्वायातौ विहायसा ॥चारणश्रमणो तत्र | राजहंसाविवोज्ज्वलो॥८७॥ - अर्थ-हवे ते अवसरे आकाशमार्गे नंदीश्वरद्वीपनी यात्रा करवा माटे राजहंस जेवा उज्वळ वे चारण मुनिओ जता हता. 87 | शिष्यों गुरुमभाषिष्ट | दृष्ट्वा तांश्चतुरो मृतान् // स्वामिन् शस्त्रहतौ द्वौच। द्वौ विषेण कथं वद // 8 // " अर्थ-तेमांथी शिष्ये गुरुने पूछ्यु के-'हे स्वामी आ चारमां वे शस्त्राघातथी अने थे विषप्रयोगथी केम मरण पाम्या? ते कहो.' DODOIDIODDDDDDOMMOD HD PP AC Gurratasun MS Jun Gun Aaradhat Trust

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