Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Harshkunjar Upadhyay
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 102
________________ सुमित्र चरित्रम् DDREEDDDDDDDDDDDDDDDDE गुरुस्ततोऽवदद्वत्स / पुरा सुग्रामनामनि ॥ग्रामे राज्ञो दृढस्यासं-श्चत्वारो से वराः // 89 // व अर्थ-त्यारे गुरुए कह्यु के-' हे वत्स ! सांभळ? पूर्वे सुग्राम नामना गाममां मुद्रढ नामना राजाने चार श्रेष्ठ सेवको हता.८९॥ न ते च वैरिगृहीतं स्वं / ग्रामं ज्वालयितुं जनान् // हंतुं वालयितुं वैरं / प्रभुणा प्रेषिता ययुः॥९॥ म अर्थ-ते चारेने वैरीए गृहण करेलु पोतानुं गाम वाली नाखीने अने लोकोने मारी नाखीने पैर वाळवा माटे तेना स्वामी राजाए मोकल्या. // 90 // दृष्ट्वा ग्रामं पशुस्त्रीभि-बलकादिभिराकुलं / दयाचित्तास्ते चक-रिति चित्ते विचारणां // 91 // __अर्थ-ते गामने पशुओ, स्त्रीओ अने बाळको विगेरेथी व्याप्त-भरपूर जोइने दयावडे आईचित्तवाला तेओ पोताना चित्तमां आ प्रमाणे विचार करवा लाग्या के-।। 91 // |धिगस्तु जीवितं लोके / सेवकानां सदैव हि // यत्पराधोनवृत्तित्वा-ल्लभंते न क्षणं सुख // 92 // ___अर्थ-सेवकोना जीवितने धिक्कार छे के जेओ सदैव पराधीन वृत्तिवाला होवाथी क्षणमात्र पण सुख मेळवी शकता नथी.।१२। सेवकास्तु परायत्ताः / पापं स्वोदरपूर्तये // कृत्वा नयंति ते घोरं / स्वात्मानं नरकं रयात् // 93 // : ____ अर्थ-सेवको पोतानी उदरपूर्ति माटे परतंत्रपणुं स्वीकारीने घोर पापो करे छे, अने पोताना आत्माने नरकमां लइ जाय छे. ततोऽस्माभिरयं ग्रामो। ज्वालनीयो न पापकृत // विचायति क्वचित्क्षेत्रे-ज्वालयन् प्रलकोच्चयं // 9 // Io P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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