Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Harshkunjar Upadhyay
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 28
________________ মিম चरित्रम् // 27 // क्रमेण यौवनारुढ-मित्यवेत्य धनेच्छया // कन्ययेव वृतस्तस्मा-दचलं द्यम्नहेतवे // 29 // ____ अर्थ-अनुक्रमे हुँ पोताने युवावस्था प्राप्त थयेलो जाणोने कन्यानी इच्छानी जेम धननी इच्छाबडे सुवर्ण मेळववा सारं चाली नीकळ्यो. // 29 // इतो दूरं दिशि प्राच्या-मतीसारामयी मया // मंदसिद्धः पटूचक्रे / भक्त्या शुश्रूषितो वने // 30 // अर्थ-पूर्वदिशामां घणे दूर जतां अतिसारना रोगवाळो कोइ सिद्धपुरुष वनमा रहेतो हतो तेने में भक्तिपूर्वक शुश्रूषा करीने निरोगी कों. // 30 // तुष्टः सोऽपि ददो मह्यं / विद्यामक्षीणसंज्ञकां // यस्याः प्रभावतः सर्व-मक्षयं वस्तु जायते // 31 // ___अर्थ-तेथी प्रसन्न थयेला तेमणे मने अक्षयपात्रनी विद्या आपी, जेना प्रभावथी बधी वस्तुओ अक्षय-अखूट थइ जाय छे.।।३१।। प्राप्य विद्यां विशालाक्ष / कल्पवल्लीसमामिमां // समागामत्र सिद्धस्य / नत्वा चलनयामलं // 32 // __अर्थ-हे विशाळाक्ष ! कल्पवृक्षनी जेवी ते विद्या पामीने हुँ ते सिद्धने नमस्कार करीने पगे चालतो अहीं पाछो आव्यो.।३२॥ व व्यंजनं यद्वदन्नस्य | यथा चांगस्य भूषणं // दानस्यान्ये गुणास्तव-त्परिवाराय केवलं // 33 // ___अर्थ-अन्नने जेम शाक शोभावे छे तेम मनुष्य-शरीर भूषण दान छे. अन्य गुणो तो केवळ तेना परिवारभूतज छे.॥३३॥ मदानमेकं ततः श्रेष्टं / महर्द्धिरपि मानवः // तेन हीनो विना क्षीरं / स्थला गौरिव नाति // 34 // DODDDDDDDDDDDDDDDDDIAS // 27 // P.P.AC.Gunrathasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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