Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Harshkunjar Upadhyay
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 26
________________ सुमित्र // 25 // @D DOODDDDDDDDDDDDDDDDDE क्रमेण नगरं नाम / प्राप पुष्पपुरं वरं // सत्रागारं मनोहार-मपश्यत्तत्समोपतः॥ 19 // ___ अर्थ-अनुक्रमे तेओ पुष्पपुर नामना श्रेष्ठ नगरनी समीपे पहोंच्या. त्यां समीप भागमांज एक मनोहर सत्रागार (दानशाला) न तेमणे जोइ. // 19 // तत्रैक्षिष्ट लसन्मूर्ति-मंभोजदललोचनं // दयापीयूषसंपूर्ण / पुरुषं विश्ववत्सलं // 20 // ____ अर्थ-त्यां तेमणे उल्लसायमान आकृतिवाळा, कमळना पत्र समान लोचनवाला, दयारुप अमृतथो संपूर्ण अने विश्ववत्सल एवा एक पुरुषने जोयो. // 20 // अग्रप्रदेशसंस्थेभ्यो / भृतेभ्यो मोदकादिभिः // स्वर्णरूप्यमयेभ्यस्तु / भाजनेभ्योऽक्षयैधनैः॥ 21 // . अर्थ-के जे पुरुष पोतानी समीपमा रहेला सोना-रुपाना निबीड अक्षयपात्रमाथी काढीकाढीने स्वादिष्ट मोदकादिवडे // 21 // स्निग्धैः षोढा रसोपेते-नाहारीनिरंतरं // समाकार्य जनान भक्त्या / भोजयंतं सहस्रशः // 22 // ____ अर्थ-तेमज षड्रस भोजनवडे हजारो जनोने बोलावी बोलावीने भक्तिपूर्वक जमाडतो हतो. // 22 // कियत्कालं विलंब्यासी / तत्स्वरूपं निरीक्ष्य च // सुमित्रस्तंप्रति प्रोचे / सविस्मयमिदं वचः // 23 // | अर्थ-आ प्रमाणे निरंतर करता एवा तेने केटलाक वखत सुधी जोइने तेनुं स्वरुप बराबर समजीने केटलेक विलंबे विस्मयकारी वचनोवडे सुमित्रे पूछयु के-1 23 / / // 25 // Jun Gun Aaradnak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S.

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