Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Harshkunjar Upadhyay
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ सुमित्र - चरित्रम् // 71 // ___अर्थ-हुँ बे मास त्यां रह्यो अने भक्ति वडे ते विद्याधारीने रंजित कर्यो; तेथी तेणे मने पदज्ञा विद्या संपूर्ण आपी. // 56 // कियत्कालं पुनः सेवा-मकार्ष तस्य सद्गुरोः॥ ततः प्रसन्नचित्तस्या-देशमाप्याचलं प्रभो // 57 // ___अर्थ-फरीने पण केटलाक काळ सुधी में ते सद्गुरुनी सेवा करी. पछी प्रसन्नचित्त थयेला तेमणे मने आज्ञा आपी एटले हुँ त्यांथी चाल्यो. / / 75 // गुरोस्तस्य प्रसादेन / पदविद्यानुभावतः॥ प्रसत्त्या श्रीमतामेतान् / सुहृदोऽहममेलयं // 58 // अर्थ-गुरुनी कृपाथी मळेलो पदविद्याना प्रभावथी भाग्यने लइने तमारो अने आ मित्रोनो मने मेळाप थयो. // 58 / / प्राप्तविद्यैस्त्रिभिमित्रेः / समं युष्मत्पदे पदे // शून्यमागामिमं द्रंगं / भवत्पदपवित्रितं // 59 // ___ अर्थ-विद्या प्राप्त करेला त्रणे मित्रोनी साथे तमारा पगले पगले चालतां आ शून्य नगरे आव्या के जे नगर तमारा पगलांथी पवित्रित थयेलं हतुं. // 59 // पुरोद्यानादिभूमिषु / दृष्टं पदकदंबकं // परं नैक्षि भवानत्र / श्रीबाहुबलिनादिवत् // 6 // __अर्थ-अमे नगरना उद्यानादि भूमिमां तमारा पुष्कळ पगलांओ जोया, परंतु श्री बाहुबलिए प्रभातकाळे प्रथम जिनने जोया नहोता तेम अमे पण तमने अहीं जोया नहीं. // 6 // ततः खियोरनुपदं / श्रीमद्विजयपत्तनं / गत्वाऽद्राक्षम वयं तत्र / सत्रागारस्थितामिमां // 61 // __अर्थ-पछी चे स्त्रीओना पगले पगले अमे श्रीविजयपत्तन नगरे गया. त्यां दानशाळामां रहेली आ प्रियंगुमंजरीने अमे जोइ.॥ ID DADDOODDDDDDDDDDDDDDD [10 P.P.AC Guralnasur MS Jun Gun Aaradhak Trust

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