Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Harshkunjar Upadhyay
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 98
________________ चरित्रम 97 // विस्तीर्णवटवृक्षस्य / तले सायं समाययुः॥ ते चत्वारोऽप्युपग्रामं / मार्गश्रांताः सखैषिणः // 69 // अर्थ-एक दिवस संध्याकाळ तेओ गामनी नजीक एक विस्तीर्ण वडवृक्षनी नीचे आव्या. चालवाथी थाकेला अने विसामाना | इच्छक एवा ते चारे त्यांज रह्या. // 69 // .............. . ........ . चतुर्ष निशि यामेषु / क्रियायां यामिकस्य ते // विधाय वारकांश्चक्रुः / शयनं कोमलस्थले // 7 // ___ अर्थ-रात्रिना चार पहोरे चोकी करवा माटे एकेक जणना वारा.ठरावी एकेक जणे पहेरेगिर तरीके जागृत रहेवानुं अने 5 बाकीना त्रण मित्रोए कोमळ स्थळ जोइने शयन करवानुं ठराव्यु.॥ 70 // प्रथमे प्रहरे राज-सुते जागरतीत्यवक् // अंतरिक्षस्थितः कोऽपि / पतामीति पुनः पुनः॥ 71 // .... अर्थ-पहेले पहोरे राजपुत्रनो वारो होबाथी ते जागतो हतो, ते वखते अंतरिक्षमा रहीने कोइ बोल्युं के 'पहुं ?' आ प्रमाणे वारंवार तेवो शब्द सांभळवाथी // 71 // साहसैकनिधिर्वीरः / श्रुत्वावोचन्नृपांगभूः॥ पुनः पुनः कथं वक्षि / यथेच्छ पत तत्क्षणं // 72 // . अर्थ-साहसिकशिरोमणि अने वीर एवो राजपुत्र बोल्यो के-'वारंवार पहुं पहुं हुं काम बोले छे? पडवु होय तो यथेच्छपणे पड'। व पुनराह समुत्पाते / सर्वेषां भवतां खलु // महानर्थोऽस्त्यनथोंऽपि / श्रुत्वैतद्राजसूर्जगौ // 73 / / अर्थ-वळी अंतरिक्षमाथी अवाज आव्यो के-'मारा पडवाथी तमैने सर्वेने मोटा अर्थनी साथे अनर्थनी पण प्राप्ति थशे.' ते न सांभळीने राजपुत्र चोल्यो के-1॥ 73 / / 1.97 // PP.AC.Gunratnasur M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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