Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Harshkunjar Upadhyay
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 97
________________ सुमित्र DOOOOOOOOOOD ADDDDDDDDDD / अर्थ-लोको कहेवा लाग्या के-'आ पुरुषने धन्य छे के जेणे आपणा श्रेष्ठीपुंगवने उपाधिमुक्त कर्या.' आ प्रमाणे सर्व लोकोनी / प्रशंसा सांभळतो ते मंत्रीपुत्र बजारमा आव्यो. // 64 // तेन वित्तेन तैर्मित्रैर्यथेच्छं बुभुजेतरां // नानाभोगा गृहस्थांनां / यतोऽर्थः कल्पपादपः // 65 // . | अर्थ-अने ते द्रव्यवडे अन्नपानवस्त्रादि ग्रहण करी मित्रो पासे आव्यो अने मित्रोने यथेच्छ खानपानवडे प्रसन्न कर्या. गृहस्थोने | धन ए कल्पवृक्ष तुल्य छे.'॥६५॥ वापीकूपतडागाब्ज-प्रासादप्रमुखाणि ते // चित्राण्यपश्यन् रम्याणि / यतस्ते कोतुकप्रियाः // 66 / / | अर्थ-पछी तेओए वापी, कूप, कमलयुक्त सरोवरो अने पासादो तथा मनोहर एवा चित्रादिक चोतरफ फरीने जोया, कारण के तेओ कौतुकप्रिय हता. // 66 // . स्थित्वा कालं कियंतं ते / तत्र स्वेच्छाविहारिणः // प्रतस्थिरे ततः स्थानाद / दूरदेशदिदृक्षया // 67 // . 'अर्थ-स्वेच्छाविहारी एवा तेओ त्यां केटलोक काळ रहीने दूर देश जोवानी इच्छावडे पाछा त्यांथी आगळ चाल्या.॥ 67 // प्राप्याटवीं महाघोरां / सिंहव्याघ्रगजादिभिः // सुखेन पारमापुस्ते / संसारस्येव योगिनः // 68 // H. अर्थ-मार्गमां एक महा घोर अटवी आवी ते सिंह, वाघ, हाथी विगेरे श्वाषदोथी व्याप्त हती. योगी जेम संसारनो पार पामे | तेम तेओ सुखे सुखे ते अटवीनो पार पाम्या. // 68 // PP. Ac Gunratrasuri MS Jun Gun Aaradhak Trust

Loading...

Page Navigation
1 ... 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126