Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Harshkunjar Upadhyay
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
View full book text
________________ सुमित्र // 88 // . अर्थ-असंतोषथी उदभवतो लोभ परम वैरनुं कारण थाय छे, ते उपर राजा, मंत्री श्रेष्टी, अने कोटवाळना पुत्रोन दृष्टांत नछे ते आ प्रमाणे-॥ 23 // A तथाहि सर्ववस्तूनां / संकेतमिव सुंदरं // वसंतपुरमित्यस्ति / नगरं नगरोत्तमं // 24 // . अर्थ-सर्व वस्तुओना संकेतवाळ सुंदर अने उत्तम नगर जेवू वसंतपुर नामर्नु नगर छे.॥ 24 // त्रनपस्तत्र / कंठीरवकिशोरवत // राजतेऽरिकरिवाते / स्वप्रजांभोजभास्करः॥ 25 // .. म अर्थ-त्यां जितशत्रु नामे राजा छे, ते शत्रुरूप हस्तीओना समूहमा सिंहना किशोर जेवो छे अने पोतानी मजारूप कमळने विकसाववामां मूर्य जेवो छे. // 25 // पुरे तत्र नृपामात्य-श्रेष्ट्यारक्षकनंदनाः॥ समानवयसो नित्यं / क्रीडां चक्रुः परस्परं // 26 // अर्थ-ते नगरमां राजा, अमात्य, शेठ अने आरक्षकना समान वयवाला पुत्रो निरंतर साथे रहीने क्रीडा करे छे. // 26 // | एकस्यां लेखशालाया-मशिक्षत कलाः कलाः // क्रमेण यौवनं प्रापुर्युवतीजनमोहनं // 27 // अर्थ-एकज लेखशाळामां ते चारे सर्व कळाओ शीख्या. अनुक्रमे तेओ युवतीजनना मनने मोह पमाडनार यौवन पाम्या.।२७।। आबाल्यादपि सस्नेहै-रेकदा तैः परस्परं // एवमालोचितं पूर्व-कृतकर्मानुमानतः // 28 // . अर्थ-बाल्यावस्थाथीज परस्पर स्नेहवाळा तेओए एकदा पूर्वकर्मना प्रभावथी एम विचार कर्यो के-॥ 28 // Jun Gun Aaradha Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S.

Page Navigation
1 ... 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126