Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Harshkunjar Upadhyay
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 92
________________ सुमित्र चरित्रम् / / 91 // ___ अर्थ-ते हकीकत जाणवाथी गामना लोको बहु राजी थया, एटले बीजे दिवसे तेओए तेमने आदरपूर्वक जमाड्या. तेओ जमीने जराबार सुखपूर्वक आसायेश लइने पाछा आगळ चाल्या. // 38 // क्रमेणापुः पुरं किंचि-त्पूरितं विश्ववस्तुभिः // भोजनायोद्यमं तत्र / चकार व्यवहारिसूः // 39 // ___अर्थ-अनुक्रमे तेओ एक नगर पासे आव्या के जे नगर सर्व वस्तुओवडे परिपूर्ण जणातुं हतुं, त्यां व्यवहारीना पुत्र भोजन मेळववा उद्यम को. // 39 // समागत्यापणश्रेणौ। कस्यचिद्वणिजः करे // समर्प्य मुद्रिका किंचि-जग्राह द्रविणं सुधीः॥४०॥ अर्थ-वजारमां दुकानोनी श्रेणी तरफ आवीने कोइक वणिकना हाथमां मुद्रिका आपीने तेणे अमुक द्रव्य लीधु. // 40 // चतुष्पथे स वस्तूनां / परीक्षासु विचक्षणः // कयं च विक्रयं कृत्वा-जयरपंचशतीमितः // 41 // अर्थ-पछी वस्तुओनी परीक्षामां विचक्षण एवो ते चतुष्पथमां गयो अने त्यांथी कोइ वस्तु सस्ते भावे खरीद करी, तरतज ते वेची नाखीने पांचशे द्रम्म मेळव्या. // 41 // यामैकमध्यतोऽदीनो। दीनाराणां सुलक्षणः // मूलस्वेनोर्मिकां नीत्वा / लाभद्रव्यमथानयत् // 42 // / अर्थ-एक पहोरनी अंदर ए प्रमाणे लाभ मेळवीने अदीन एवा तेणे मूळ द्रव्य पार्छ आपीने मुद्रिका पाछी मेळवी. // 42 // तेन भोजनसद्वस्त्र-तांबलकुसुमादिभिः॥ वयस्यांस्तोषयामास / सर्वान श्रेष्टिसुतोत्तमः // 43 // DDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDD // 9 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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