Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Harshkunjar Upadhyay
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 93
________________ सुमित्र 92 // ....' अर्थ-पछी मेळवेला द्रम्मवडे भोजन, वस्त्र, तांबुल, कुसुमादिक खरीद करी मित्रो पासे आवीने ते श्रेष्ठीपुत्रे पोताना मित्राने | न चरित्रम् संतोष पमाड्या. // 43 // तत्रोषित्वाग्रतश्चलः / क्रमात्सुरपुराभिधं // द्रंगमाप्य सुरावासे / तस्थुस्ते सुहृदः सुखं // 44 // अर्थ-त्यां रात्रि रहीने पाछा आगळ चाल्या. अनुक्रमे सुरपुर नामना नगरे आव्या, त्यां कोइ देवळमां चारे मित्रो आनंदयी रह्या, मंत्रिसर्वारकं सोऽथ / मत्वागात्स चतुःपथं // वाद्यमानमथ श्रुत्वा / पटहं कंचिदब्रवीत् // 45 // अर्थ-आजे मंत्रीपुत्रनो वारो होबाथी ते चतुष्पथमां गयो. तेणे पटह वागतो सांभळीने कोइने पूछयु के-॥४५॥ किमर्थमयमत्यंतं / ताब्यते सोऽपि तं जगो॥ दूरदेशिन दयाधार / शृणु त्वं कारणं रयात // 46 // अर्थ- आ पटह शा माटे अत्यंत वगाडवामां आवे छे ?' तेणे जवाब आप्यो के-'हे दूरदेशमा रहेनारा मुसाफर ! तेनं कारण सांभळ ? // 46 // कतथिदागतोऽस्त्यत्र / सर्वधूर्तशिरोमणिः // धूर्तः कोऽपि नरोऽत्रत्यं / धृत्वा सार्थपति जगौ // 47 // - अर्थ-अहीया कोइ सर्वधूशिरोमणि मनुष्य कोइ स्थळेथी आवेलो छे, तेणे अहींना एक सार्थवाहने एक दिवस कथु के-॥ मायदहं त्वत्पुरो लक्ष-मेकं प्रच्छन्नमुक्तवान् // दीनाराणां हि तत्सार्थ-पते तन्मम दीयतां // 48 // ___अर्थ-'हुँ तमारे त्यां छानी रोते एक लक्ष दीनार मूकी गयो हुं, ते हे सार्थपति ! मने पाछा आपो.' // 48 // // 92 // PP.AC.GunratnasuriM.S. Jur.Gun Aaradhak Trust

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