Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Harshkunjar Upadhyay
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 86
________________ सुमित्र // 85 // तत्कालं स समुत्थाय / मंत्रिसामंतसंयुतः॥ प्रियंगुमंजरीमुख्यां-तःपुरीभिः परिवृतः॥९॥ अर्थ-पंछी मंत्री तथा सामंत सहित तरतज त्यांथी उठीने भियंगुमंजरी छे मुख्य जेमां एवी अंतःपुरनी राणीओथी परवरेलो, सिंधुरमारूढो / लसच्छत्रः स्फुरद्रुचिः॥ चलञ्चामरयुग्मेन / राजमानो महेंद्रवत् // 10 // अर्थ-पट्टहस्ती उपर चडेलो, छत्रथी शोभतो, स्फुरायमान भीतिवाळो, इंद्रनी जेम चामरयुगलथी ये वाजु बींझातो ते राजा उद्यान तरफ चाल्यो. // 10 // वाद्यमानेषु वायेषु / गीयमानेष्वनेकशः // गीतेषु जायमानेषु / नृत्येष्वगणितेषु च // 11 // अर्थ-अनेक प्रकारना बाजीलो वागते छते, अनेक प्रकारना गायनो गवाते छते, विविध प्रकारना नृत्यो थते छते, // 11 // दानेषु दीयमानेषु / स राजा समहोत्सवं // सूरिं सातिशयं नंतुं। प्रतस्थे चाप तदनं // 12 // ___अर्थ-अने पुष्कळ दान आपते छते ते राजा मूरिपुंगवने अतिशय भक्तिथी नमस्कार करवाने माटे मोटा आडंबर सहित ते उद्यान नजीक पहोंच्यो. // 12 // . | त्यक्त्वा गजादिचिह्नानि / पंचावग्रहपूर्वकं // विधिज्ञो विधिवत्सूरिं / ननाम सपरिच्छदः // 13 // _अर्थ-एटले हाथी आदि राजचिनोनो त्याग करीने, पांच प्रकारना अभिगम जाळवषापूर्वक विधिने जाणवावाला ते राजाए। HI परिवार सहित विधिपुरःसर ते आचार्यमहाराजने नमस्कार को. // 13 // PP.AC.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust

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