Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Harshkunjar Upadhyay
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ सुमित्र चरित्रम् // 84 // चकोरवन्निशारत्नं / स्वामिन्नुद्यानपालकः // त्वदंहिकमलं दृष्टु-मुत्सुको द्वारि तिष्ठति // 4 // अर्थ- चकोर जेम चंद्रने जोवा इच्छे तेम हे स्वामिन् ! उद्यानपालक तमारा चरणकमळ जोवाने उत्सुक थयो सतो द्वारे रहेलो छे. // 4 // निशम्येति नृपोऽवोच-च्छीघ्रमानय तं ततः॥ कृतप्रवेशो नृपतेः। सभायां स समाययो // 5 // __अर्थ-तेने माटे सुं आज्ञा छे ?' ते सांभळीने राजाए कह्यु के-'तेने शीघ्र प्रवेश कराव.' एटले प्रतिहारीए रजा आपवाथो उद्यानपालक राजसभामा प्रवेश करी, // 5 // ढोकयित्वा नृपं प्राह / स्फुरहकुलमालिकां // उद्यानेऽद्यैव ते देवा-ययो पुष्पावतंसके // 6 // __अर्थ-स्फुरायमान बकुलना पुष्पनी माळा अर्पण करीने बोल्यो के-'हे राजन् ! हे देव ! आपना पुष्पावतंसक नामना उद्यानमां धर्मघोषाभिधः सूरिः / साधुवृंदसमन्वितः // बहुहस्तिपरीवारो। यूथनाथ इव द्विपः // 7 // अर्थ-घणा हस्तीओना परिवारथी परवरेला गुथना स्वामी गजेंद्रनो जेम धर्मघोष नामना आचार्य घणा साधुओ सहित पधार्या छे.' // 7 // कर्णामृतमिवाकर्ण्य / दत्वा तस्मै नरेश्वरः॥ रोमांचितवपुः सर्वा-भरणानि प्रहर्षतः॥८॥ ___ अर्थ-कर्णामृत जेवो अमृतनी जेवी-कानने. अत्यत पिय लागे तेवी वाणीने सांभळीने हर्पित थयेला शरीरवाळा ते नृपतिश्रेष्ठे - अत्यंत हर्षधी तेने सर्व आभूषणो आपी राजी कर्यो. // 8 // WOODOORDPOOOOOOOOGDISE रोमांचिताः सर्वाभरणानि प्रहर्षतः // 1 // 5 // PPAGunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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