Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Harshkunjar Upadhyay
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ चरित्रम् सुमित्र |ततः सुरादयः सर्वे / सुमित्रं मित्रसन्निभं // राज्येऽभिषिषिचुः प्रोढ-प्रतापं परमादरात् // 67 // अर्थ-पछी सूरादि सर्वेए परम मित्र अने प्रौढप्रतापो सुमित्रनो त्यांना राज्य उपर आदरपूर्वक अभिषेक कर्यो. // 67 / / / / 73 // दिशोदिशं गता आसन् / ये ये रक्षोभयाकुलाः // पुनस्ते मंत्रिसामंत-व्यावहारिकपूर्वकाः // 68 // लोकास्तं राक्षसं हत्वो-पविष्टं परदेशिनं // सुमित्राख्यं महाराज्ये / ह्यमुष्मिन् शुश्रुवश्चरैः॥ 62 // ___अर्थ-चारे दिशाए राक्षसना भयथी व्याकुळ थइने चाल्या गयेला मंत्री, सामंत व्यवहारीआ विगेरे लोकोए ते राक्षसने | हणीने सुमित्र नामचो परदेशी राजकुमार श्री कनकपुरना महाराज्यपर बेठेल छे एवु चरोना मुखथी सांभळ्युः // 68-69 // | अत्युग्रपुण्यं तं ज्ञात्वा / राजानं रसपूरिताः // सर्वे लोकाः समाजग्मु-स्तत्पुण्याकर्षिता इव // 70 // | अर्थ-तेथी ते राजाने अत्युन पुण्यवाळो जाणीने रसपूरित एवा सर्वे लोको तेना पुण्यथी आकर्पित थइने त्यां आव्या. 170 नगरं तत्तथा देशो। युगपतषितोऽखिलः // यथास्थानस्थितः सर्वो। जनस्तु शुशुभेतरां // 71 // अर्थ-एटले ते देश ने नगर सर्व समकाळे प्रथमनी जेम वसी गयु अने यथास्थान स्थित थयेला सर्वे लोको पण अत्यंत शोभवा लाग्या. // 71 // सुमित्रस्तु नरेंद्रोऽपि / युक्तायुक्तविचारवित् / / मंत्रीश्वरपदेऽयुक्त / सूरं सद्बुद्धिमंदिरं // 72 // ___ अर्थ-युक्तायुक्तनो विचार करी शकनारा सुमित्र राजाए सद्बुद्धिना मंदिर तुल्य मूरने मंत्रीपदे स्थापन कर्यो, // 72 // GoodROOOOOOOOOOOOOOOEED 'DDDDDDDDDDDDDDDIGDHODA 1173 / / PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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