Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Harshkunjar Upadhyay
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 75
________________ सुमित्र चरित्रम् / / 74 // DeaHRD DEDDDDDDDED तलारक्षपदे न्यस्तः / सीधरः श्रीधरोपमः॥ सुत्रामं स नृपश्चके / पुरोधःपदमंडनं // 73 // - अर्थ-श्रीधरनी उपमावाळा सीधरने कोटवाळना स्थानके स्थापन कर्यो, सुत्रामने पुरोहितनुं पद अर्पण कयु.॥ 73 // स निन्ये सागरं सर्व-सूत्रधारकमुख्यतां // तथान्येऽपि हि तत्रत्या / यथास्थानं नियोजिताः॥ 74 // ___ अर्थ-अने सागरने सर्व सूत्रधारमा मुख्य बनाव्यो. ए रीते बीजा पण त्यां रहेलाओनी योग्य स्थाने योजना करी. // 7 // चतभिस्तैर्नपो रेजे। स्वपदश्रीमनोरमैः॥ भूमंडले यथा खगें / लोकपालैः पुरंदरः // 75 // ___ अर्थ-पोतपोताना स्थानने शोभावनारा चार अधिकारीओवडे स्वर्गमा रहेल इंद्र जेम लोकपालोवडे शोभे तेम ते पृथ्वीतलपर | शोभवा लाग्यो / / 75 // .. चतुरंगबलैर्युक्तः / श्रीसुमित्रो महीपतिः // काश्यपी कंपयन् सैन्यैः / प्रतस्थे दिग्जयंप्रति // 76 // ____ अर्थ-अन्यदा चतुरंग सेनाना बळथी युक्त एवो सुभित्र महाराजा सैन्यथी पृथ्वीने कंपावतो दिग्विजय माटे निकळ्यो. 176 / साधयित्वा बहून देशान् / सेवकीकृत्य भूभृतः // प्रतापाक्रांतदिक्चक्रो / भृशक्रः प्राविशत्पुरीं // 77 // ___ अर्थ-अने घणा देशोने साधोने, अनेक राजाओने सेवक बनावीने, दिशारूप चक्रनु आक्रमण करता पृथ्वीना इन्द्र जेवा तेणे पुनः पोतानी नगरीमा प्रवेश कर्यो. // 77 / / पर्यणेषीनरेंद्राणां / नंदिन्योऽनेकशः पुनः // प्रियंगुमंजरी पट्ट-राज्ञी चक्रे प्रकृष्टधीः // 78 // // 74 / / PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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