Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Harshkunjar Upadhyay
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ सुमित्र चरित्रम् 24 // रथः कथं नभोमागें / गच्छेत्काष्टमयो वद // सोऽभाषिष्ट कुमारेश / विद्याया प्रेरितो मम // 14 // . ___ अर्थ-कुमारे पूछयु के-'काष्टमय रथ आकाशगमन शीरीते करो शके ?' त्यारे सूत्रधार वोल्यो के-' हे कुमारेश ! मारी पासे रहेली विद्याना बळथो आकाशगमन करे. // 14 // समित्रोऽभीष्टमित्रं यः। सूत्रभृत्पुत्रसागरः॥ तदाग्रहात्तमाचष्ट / विद्येयं पात्र अर्हति // 15 // अर्थ-मुमित्रे पोताना अभिष्ट मित्र सूत्रधारना पुत्र सागरना आग्रहथी पूछयु के-' हे सूत्रधार ! तमे ए विद्या योग्यने आपो खरा ? // 15 // कथं नाहति तक्षोऽव-ग्योग्ये विद्येयमक्षिवत् // योग्यः स एव योऽस्माभिः। कियत्कालं परीक्षितः // 16 // अर्थ-सूत्रधारे कड्यु- योग्यने केम न आपुं ? पण मारी साथे केटलोक काळ रहे, हुं परीक्षा करुं अने पछी आपुं.' // 16 // |श्रत्वैतत्सागरस्तस्थौ / तमापृच्छय भवत्कृते // विद्यां नीत्वा समेष्यामि / शीघ्रमस्माजगाविति // 17 // __ अर्थ-आ प्रमाणे सांभळोने कुमारनी आज्ञा लइ सागर त्यां रह्यो अने कयु के-'आमनी पासेथी तमारे माटे आ विद्या मेळनवीने हु शीघ्र तमारी पासे आवीश.' // 17 // सुमित्रस्तमपि प्रीति-पात्रं मित्रं. विमुच्य च // जितसूरेण सूरेण / प्रतस्थे सेवितस्ततः // 18 // . अर्थ-सुमित्र ते प्रीतिपात्र मित्रने पण त्यां मूकीने जितसूर एवा सूरनी साथे तेनाथी सेवातो सतो आगळ चाल्यो. // 18 // DDDDDDDDDDDDDDDOOOOD // 24 PP A Gunratnasur MS Jun Gun Aaradhak Trust

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