Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Harshkunjar Upadhyay
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ चरित्रम् सुमित्र। अहो रूपमहो कांति-रहो लावण्यमद्भुतं // अहो भाग्यातिरेकत्व--महो लीला तयोरियं // 26 // 9 अर्थ-अहो रुप ! अहो कांति ! अहो अद्भुत लावण्य ! अहो भाग्याधिकता! अहो एमनी लीला / / 26 / / // 47 // किमिदं खेचरद्वंद्वं / किं पौलोमीसुरेश्वरौ // वैरिणीति क्षणं दध्यौ / विस्मयस्मेरमानसा // 27 // ___अर्थ-शुआ ते कोइ विद्याधरनुं जोडलं छे अथवा शुं इंद्राणी ने इंद्र भूमिपर क्रोडा करवा आव्या छे ?' आ प्रमाणे विचारती | ते गणिकाए // 27 // प्रियंगुमंजरीं दृष्ट्वा / ताहक्कूर्पासधारिणीं // नूनं सैषा भवत्येव / राज्ञश्चित्तं हृतं यया // 28 // ___अर्थ-राजाने मळेला ते कंचुकनी जेवाज कंचुकने धारण करनारी प्रियंगुमंजरीने जोइ, एटले तेणे निश्चय कर्यो के-'जरुर आ तेज स्त्री छे के जेणे मारा राजना मनतुं हरण कयु छे.' // 28 // फलवान् मत्प्रयासोऽभू-दद्य जागरितं खलु // मद्भाग्यैर्यत्तु दृष्टेय-मित्यंतः सा व्यचिंतयत् // 29 // __अर्थ-वळी तेणे विचायु के-'मारो प्रयास फलिभूत थयो छे, जागता एवा मारा भाग्यवडेज मने आ स्त्रीनो पत्तो मळ्यो छे.' सिद्धसीकोत्तरीभावा-स्वरूपं सकलं खलु // ज्ञात्वा प्रियंगुमंजर्या-स्ततः कपटपंडिता // 30 // ____ अर्थ-पछी ते सिद्धसीकोत्तरीना प्रभावथी पियंगुमंजरीना सर्व स्वरुपने जाणी लइने कपट करवामां चतुर एवी ते वेश्या ।३०।तस्यैवोद्यानसामीप्ये / मार्गतीरे तरोस्तले // वदंती. नाम भपादे-स्तारं तारं रुरोद सा // 31 // DODDDDDDDDDDDDDDDDDDDD | // 47 // PP.AC.Guriratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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