Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Harshkunjar Upadhyay
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ चरित्रम् 62 // [DOOODDDDDDDDED IDOLI ज्ञात्वा पतिव्रतां वाक्यैः / सा च दुष्टाशया ततः॥ कोपेन विकटं रूप-माधाय प्रखरं जगौ॥६॥ / अर्थ-आवां ते पतिव्रताना वाक्यो सांभळीने ते दुष्टाशयवाळी वेश्या कोपवडे विकटरुप करीने मोटेची बोली के-॥ 6 // आः पापे किं न जानासि / सिद्धसीकोत्तरी हि मां // त्वामहं मारयिष्यामि / नो चेत्कुरु ममेप्सितं / __अर्थ- अरे पापिणी ! शुं तुं मने सिद्धसीकोत्तरी तरीके ओळखती नथी? माटे तुं मारा कह्या प्रमाणे कर, नहीं तो ईतने पण मारो नाखीश.' // 7 // प्रियंगमंजरी ज्ञात्वा / तां महाशाकिनीश्वरी // सस्मार रहसि प्रोक्तं / भर्तुर्वाक्यमिदं स्खला .. अर्थ-प्रियंगुमंजरी तेने महा शाकिनीओमां पण मुख्य जाणीने पोताना भर्तारे एकांतमा कहेल हकोकत संभारी के-॥ 8 // प्रिये चंपापुरे रम्ये / राजा धवलवाहनः॥ राज्ञी प्रीतिमती पुत्रः / सुमित्राबस्तयोरहं // 9 // - अर्थ-'हे प्रिये ! रम्य एवी चंपापुरीना राजा धवळवाहननो राणी पीतिमतीना हुं सुमित्र नामनो पुत्र छ // 9 // तातरोषेण तद्देशं / त्यक्त्वा देशांतरंप्रति // सूरसीधरसुत्राम-सागरैः सहितोऽचलं // 10 // . अर्थ-पिताना रोषथी ते देशने तजीने सूर, सीधर, सुत्राम ने सागर नामना चार मित्रोनी साथे हुं चाली नीकळेलो छु.॥१०॥ पदनिष्काशिनी मुख्यां / विद्यां लातुं पृथक्पृथक् // ते षण्मासावधिं कृत्वा / स्थिताः संति सुहृत्तमाः // 11 // अर्थ-ते मारा मित्रो जूदी जूदी चार प्रकारनी विद्या मेळववा माटे छ मासनी मुदत करीने चार जग्याए रोकायेला छे.॥११॥ P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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