Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Harshkunjar Upadhyay
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ सुमित्र चरित्रम् // 68 IDDOODHO DOEEDODDDDDDDDEDD सादरं स जगादेति / प्रिये पादोऽवधार्यतां // दासे मल्लक्षणेऽमुष्मिन् / प्रसन्नीभूय भामिनि // 38 // अर्थ-अने बोल्यो के-'हे पिये ! हवे नगरमां पगलां करो- अने मारा जेवा दासनी उपर हे.भामिनि तमे प्रसन्न थाओं // 38 // सुरूपकुलसंपन्ना-श्चतस्त्रः कन्यका इह // समानय यथा ताभि-वैरिण्यापि समं नृप // 39 // रथमेनं समारुह्य / क्षणेनैव पुरांतरे // समायामि नराधीश-मित्यवोचन्नपांगजा // 40 // " अर्थ-राजपुत्री बोली के-'हे राजन् ! तमे सारा रुप अने कुळवाळी चार कन्याओने अहीं लावो के जेथी तेओनी अने आ आ वैरिणीनी साथे रथमां बेसीने अमे नगरमा जइए अने क्षणमात्रमां. पाछा आवीए.' // 39 // 40 // तद्वशस्तु नरेन्द्रोऽसौ / क्षणेनैव तथाकरोत् / / अथ प्रसिद्धमेवैत-क्रियते किं न कामिभिः॥४१॥ ___ अर्थ-तेने वश थयेला राजाए तरतज तेना कहेवानो अमल को अने रुपवान चार कन्याओने गाममाथी बोलावी लोधी. ए वात प्रसिद्धज छे के 'कामी पुरुष शुं शं करतो नथी?' // 41 // नृपादिराजलोकेषु / पूर्जनेषु च कौतुकात् // मिलितेषु च पश्यत्सु / यत्तयाकारि तत् शृणु // 42 // अर्थ-हवे कौतुक जोवा माटे त्यां नृपादि राजलोक अने नगरजनो मल्ये छते तेणीए शुं कर्यु ते सांभळो ? // 42 // चतुर्भिर्तसन्मित्रैः / कन्यकाभिस्तथा समं // आरुरोह रथं राज-सुता वृद्धापि तद्विरा // 43 // अर्थ-पछी प्रियंगुमंजरी पोताना भर्त्तास्ना चार मित्रो अने चार कन्याओ तथा ते वेश्या सहित रथमां बेठी. // 43 // PP.ACGunratnasuri M.S. Jun.Gun Aaradhak Trust

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