Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Harshkunjar Upadhyay
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ सुमित्र चरित्रम् // 44 // एवं सह तया तत्र / सुखं वैषयिक भजन // कियंतमक्षिपत्कालं / लीलया राजनंदनः॥१०॥ अर्थ-लीलापूर्वक तेनी साथे विषयसुख भोगवतां ते कुमारे केटलोक काळ व्यतीत कर्यो. // 10 // इतथ कंचुको नद्याः। प्रवाहे स वहन् ययो॥ ततो दूरमपि क्षिप्र-मुपश्रीविजयं पुरं // 11 // अर्थ-आ वाजु नदीना प्रवाहमा तणातो कंचुक त्वरित गतिथी श्रीविजयनगर नजीक नीकळ्यो. // 11 / / प्रविश्य तारकेणासौ / गृहीत्वा दिव्यकंचुकः // मकरध्वजराजस्यो-पाढोकि परया मुदा // 12 // व अर्थ-तरीयाए नदीमा प्रवेश करीने ते कंचुक लइ लीधो अने अत्यंत आनंदथी मकरध्वज राजाने भेट को. // 12 // सूत्रकप्रोत-मुक्ताजालकमंडितं / / तथामूल्यैः स्फुरद्रत्नै-दृष्ट्वा तं मुमुदे नृपः // 13 // म अर्थ-सोनानी दोरी अने मणिनी जाळथी शोभता एवा ते कंचुकने जोड़ने राजा आनंद पाम्यो. // 13 // तं सत्कृत्य सुवर्णस्या-लंकारैः पृष्टवन्नृपः // कुत्रा, प्राप्तवान् भद्र / सोऽवोचन्निम्नगांतरे // 14 // ___अर्थ-ते तरीयानु सोनाना अलंकारथो सन्मान करीने राजाए तेने पूछ्यु के-'हे भद्र ! तने आ कंचुक क्याथी प्राप्त थयो ? a सादरं तद्विरं पीत्वा / दध्यो राजा भुजांतरे // नूनं सा रमणीरत्नं / यस्याः कूर्पासकोऽस्त्ययं // 15 // ___ अर्थ-त्यारे प्रत्युत्तरमा तेणे जणाव्यु के-' नदीना मध्यभागमांथो.' आ प्रमाणे आदरपूर्वक तेनी वाणी सांभळी राजा विचारवा लाग्यो के-'खरेखर ते स्त्री-रत्न छे के जेनो आ कंचुक छे. // 15 // DDDDDDOO DIDIODEODOODHOLTDOO ना॥४४॥ P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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