Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Harshkunjar Upadhyay
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ सुमित्र @ODDDDDDDDDDDDDDDDDOD ___अर्थ-परवाळाना रंग जेवा रक्त एना होठ छे के जे मने जोवा माटे तेना हृदयमांथी जाणे बहार आव्या न होय एवा लागे छे. // नासिका सरला रम्या / कपोलौ दर्पणोपमो // नेत्रे कर्णातपर्यंते | श्रवणो स्कंधसंगतो // 59 // . ____ अर्थ-नासिका सरल अने रम्य छे, कपोळ दर्पण जेवा छे, नेत्र कान सुधी पहोंचेला छे, कान स्कंधने अडे तेवा छे. 159 / | कटरे मस्तके केश-पाशो भ्रमरसन्निभः // सुस्निग्धः श्यामलश्चारुः / कलापः किं कलापिनः // 6 // ___ अर्थ-माथे रहेलो केशपाश भ्रमर जेबो श्याम छे. ते सुस्निग्ध, गुच्छादार अने मनोहर मोरना कलाप जेवो लागे छे. // 60 // परयंतीति कमारं तं / सर्वावयवसुंदरं / / तस्थी यावत्कुमारी सा | चित्रन्यस्तेव निश्चला // 1 // का अर्थ-सर्वांगसुंदर एवा ते कुमारने जोती ते कुमारी चित्रमा आलेखायेलानी जेम निश्चल उभी रही. // 61 // सुमित्रोऽपि हि तां ताव-त्पश्यन् पर्यंकसंस्थितां ॥ध्यो बिडालिकाव्याजा-त्किं नु काप्यप्सरा स्थिता // ____ अर्थ-सुमित्रकुमार पण हीडोळापर रहेली तेने जोतो मनमां विचारे छे के-बिलाडीना स्थाने आ अप्सरा क्याथी ? // 2 // अहो रूपमहो रूप-महो लीलामनोज्ञता // समुल्ललत्तदंगेषु / लावण्यं लोचनप्रियं // 3 // | अर्थ-अहो ! शुं एन रुप छे ? अरे एनी लीला (चेष्टा )नी मनोज्ञता पण केवी छे! आंखने पिय लागे एवं लावण्य बधा H अंगोपांगमा उल्लसित छे. / / 63 // सर्पवस्कुटिलाः केशा-स्तुळं मध्यं कुचित्तवत् // सन्मनोरथवत्प्रोच्चै-रहो स्तनयुमं हृदि // 64 // .. . DOODOOOOOOOOOOOODE ol. // 33 // Jun Gun Aaradhal Trust PP A Gunnatasur MS

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