Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Harshkunjar Upadhyay
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 23
________________ सुमित्र ADDDDDDDDDDDDDDDDDDED __ अर्थ-ग्रहण करीने हाथ-पम विगेरे अंगोने तेना शरीर साथे अने अर्ध कापेला एवा कबंधोने तेना मस्तक साथे जोडी दइने न रक्ताविलवहस्ताभ्यां / नराणां गजवाजिनां // अजीवयद् द्विजस्ताव-त्तान् सर्वान् प्राणिनः क्षणात // 4 // ___अर्थ-अनेक मनुष्योने अने हाथी-घोडा विगेरे घणा पाणीओने लोहीवडे खरडायेला पोताना हाथवडे क्षणमात्रमांजीवता कर्या. तदित्थं वीक्ष्य ते सर्वे / जाताश्चर्याः परस्परं // ऊचुः पीयूषवद्रम्या / विद्येयं भूमरुत्पतेः // 5 // अर्थ-आ प्रमाणे जोइने ते सर्व आश्चर्य पाम्या छता परस्पर बोलवा लाग्या के-'आ भूदेवपासे आ विद्या अमृतनी जेवी रम्य छे.' // 5 // अपृच्छदग्रजन्मानं / पुरोधोंगरुहाग्रहात् // सुमित्रः कलया वाचा / दीयतेऽपीयमुत्तम // 6 // ____ अर्थ-पछी पुरोहितपुत्रना आग्रहथी सुमित्रे ते विभने मधुर वाणीवडे पूच्यु के-' हे उत्तम द्विज! आ श्रेष्ठ विद्या तमे कोइने आपो खरा ? // 6 // सोऽप्युवाच कुमारेंद्र / विद्या कन्येव कुत्रचित् // दातव्येयं परं नैवा-परीक्षितजने मया // 7 // अर्थ-विम बोल्यो के-'हे कुमारेंद्र ! उत्तम विद्या कन्यानी जेम कोइकने आपवीज पडे, पण ते अपरीक्षित मनुष्यने आपुं नहीं. परिचयवडे परीक्षा कर्या पछी आपुं.' // 7 // |सुत्रामस्तं तदापृच्छ्य / कुमारं सुकुमारगीः॥ तस्थो विद्यावतः पावे | सुधीविद्याजिघृक्षया // 8 // अर्थ-आ प्रमाणे सांभळीने कोमल वाणीवाळो अने प्रखर बुद्धिमान पुरोहितपुत्र सुत्राम ते विद्या ग्रहण करवा निमित्ते ते // 22 // PP.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradha Trust

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