Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Harshkunjar Upadhyay
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 19
________________ न चरित्रम् सोऽभ्यधावत्स वृद्धोऽहं / जातस्तेनानिशं हृदि // चिंतयन्नस्मि पात्रं चे-लभे तस्मै ददाम्यतः // 8 // | अर्थ-त्यारे ते बोल्यो के-'हु वृद्ध थयो छु अने तेथी निरंतर हृदयमां विचारुं हुं के जो कोइ सुपात्र मळे तो ते विद्या तेने सुपत करुं, // 84 // | दातव्येयमवश्यं भो / बहुकालं परीक्षिते // अन्यथा नैव दातव्यं / विद्यारत्नं यतः क्वचित् // 85 // _____ अर्थ-परंतु घणा काळ सुधी परीक्षा कर्या बाद हुं जरुर आपुं. विद्यारत्म परीक्षा कर्या विना कोइने पण आपी शकाय नहीं.८५/सोधरस्तद्विरं श्रुत्वा / सुमित्रं स जगी प्रभो // दीयते भवतादेश-स्तदेयं गृह्यते मया // 86 // अर्थ-ए प्रमाणे सांभळीने सीधर सुमित्रने कयु के-'महाराज ! जो आपनी आज्ञा होय तो हुँ अहीं रहीने विद्या ग्रहण करूं किंचाहं भवतामेव / कार्यकारी सदास्म्यतः // समेष्यति भवत्कायें / मत्पावे यद्भविष्यति // 87 // | अर्थ-वळी हुं तो निरंतर तमारो कार्यकारी छ तेथी मारी पासे जे हशे ते आपनेज काम लागशे. // 87 // सत्यमक्तं त्वया मित्र / त्वद्वियोगं तथापि न // सहिष्णुरस्म्यहं तेना-नुज्ञां दातुं कथं क्षमः // 8 // - अर्थ-मुमित्रे का के-' हे मित्र ! तें सत्य कडं, परंतु तारो वियोग सहन करवाने हुं समर्थ नथी; तेथी तने केवी रीते रजा आपी शकुं? // 88 // यद्यप्येवं तथापीह / लाभालाभं विचारय / पुनः पुनरयं योगो / विद्याथें नो भविष्यति // 89 // // 18 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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