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स्यावादकल्पलता में शब्द की द्रव्यत्व सिद्धि : 15 उत्पत्ति होती है। यदि ऐसा न मानें तो मन्दवाही अगाध गंगाजल में अल्पत्व की और तीव्रवाही पहाड़ी झरनों में महत्त्व की प्रतीति की आपत्ति होगी। लोक में क्रियाधर्म का क्रियावान में गौण व्यवहार देखा जाता है, इसीलिए मन्द बहते हुए नीर को 'मन्द' शब्द से और तीव्र बहते हुए नीर को 'तीव्र' शब्द से कह दिया जाता है। ४. वायु प्रतिनिवर्तन से सिद्ध संयोग द्वारा शब्द की द्रव्यत्व सिद्धि : वक्ता के कहने की इच्छा होने पर शरीर की प्राणवायु ऊपर उठकर शिर में टकराती है और वहाँ से प्रतिनिवर्तित होकर शब्द को उत्पन्न करती है। अत: वायु का शब्द से संयोग सिद्ध है। परिणामस्वरूप संयोग गुण द्वारा भी शब्द में द्रव्यत्व का अनुमान होता है।१३ ५. संख्या के योग से शब्द की द्रव्यत्व सिद्धि : “एक शब्द, दो शब्द, बहुत शब्द' इस प्रकार प्रतीतियों से शब्द में एकत्वादि संख्या सिद्ध है। संख्या गुणस्वरूप है और गुण द्रव्य में आश्रित होता है, इसलिए संख्या के आश्रय से शब्द को द्रव्यात्मक मानना आवश्यक है।१४ इस तरह शास्त्रवार्तासमुच्चय टीकाकार उपाध्याय यशोविजय ने न्याय-वैशेषिक सिद्धान्त के मतों से शब्द की द्रव्यता को निर्बाध प्रतिपादित किया है। जैनों ने सर्वप्रथम शब्द को पौद्गलिक (Material) और तरंग स्वरूप वेगवान प्रस्थापित कर उसे एक वैज्ञानिक आधार दिया है। आज वैज्ञानिक भी शब्द को द्रव्य रूप में स्वीकार करते हैं। सन्दर्भ : १. प्रज्ञापनासूत्र, भाषा पद २. शास्त्रवार्तासमुच्चय (स्याद्वादकल्पलता टीका सहित), १०.३६, दिव्यदर्शन ट्रस्ट, ६८, गुलालवाड़ी, मुम्बई, वि०सं० २०४४, पृ० १४९ ३. वही, १०.३६, पृ० १४९ ४. 'यत् तावद् बहिरिन्द्रियव्यवस्थापकत्वात् शब्दस्य गुणत्वमुक्तम् तदसत् रूपादीनामपि द्रव्यविविक्तानामसत्त्वेनाऽतथात्वाद् दृष्टान्ताऽसिद्धेः' - शास्त्रवार्तासमुच्चय, १०.३६, पृ० १५८ ५. वही, १०.३६, पृ० १५८ ६. जिनकी बारम्बारता २० हर्ट्ज से कम है वे इन्फ्रासोनिक तथा २०,००० हर्ट्ज से अधिक वाली ध्वनियाँ अल्ट्रासोनिक कहलाती हैं।- शब्द ब्रह्म नाद ब्रह्म, प० श्रीराम शर्मा, आचार्य वाङ्मय, अखण्ड ज्योति संस्थान, मथुरा, १.९१