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करता नगरना नारीजनोना समूह थी रमणीयो... रमणीयो (नारी) ना मुखमंडनमां लागेला पोताना बंधुवोंना श्रेष्ठ द्वार श्रेष्ठ द्वारमां स्थापन करेल वंदनमालाथी शोभता श्वेतकलश... श्वेतकलश उपर स्थापन करेल हाथ वड़े प्रवेश करता मार्गमां कराता मनोहर शब्द.. मनोहर शब्दथी प्रचुर मंगल संगीतवड़े श्रेष्ठ नाटक....नाटकने जोवामां व्याक्षिप्त चित्तवाला लोकोने तंबोल अपायुं तथा अमारीनी घोषणा कराई, घणा बंदीओना समूहने छोडावायो, दीन- अनाथादिने सुख उत्पादक विविध प्रकारनुं दान अपायुं, तथा प्रत्येक जिनमंदिरमां श्रेष्ठ अभिषेकादि अनुष्ठान कराया, श्रेष्ठ वस्त्रादि वड़े साधु समुदायनी भक्ति करा ... स्वजन समूहने भोजन कराव्या, वणिक् नगर जनोनुं सन्मान करायुं, आ प्रमाणे लोकोने चमत्कारदायक पुत्रजन्मनो महोत्सव करायो... ( षड्भिः कुलकम् )
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हिन्दी अनुवाद
अक्षत पात्र लेकर नगर में प्रवेश करने वाली नारियों से रमणीय, नारियों के मुखमंडन हेतु उनके बांधवों द्वारा बनाए गए श्रेष्ठ द्वार और उन श्रेष्ठ द्वारों में स्थापित वन्दनमाला से सुशोभित श्वेत कलश को हाथों से ग्रहण करने पर उत्पन्न मनोहर शब्द से ओत-प्रोत संगीत से सजे नाटकों को विक्षिप्त चित्त से देखने वालों को पान दिया गया। उसके पश्चात् जीवघात न करने की घोषणा कर बहुत से बन्दीजनों को छोड़ दिया गया। गरीब एवं अनाथ लोगों को सुख देने वाले विविध प्रकार के दान दिए गए तथा प्रत्येक जिनमन्दिर में अभिषेक अनुष्ठान आदि कराए गए। श्रेष्ठ वस्त्रों से साधु समुदाय की भक्ति करने के पश्चात् स्वजनों को भोजन कराया गया तथा व्यापारी व वणिक वर्ग का सम्मान किया गया। इस प्रकार लोगों द्वारा चमत्कारी पुत्रजन्म महोत्सव मनाया गया।
गाहा
एवं कय- कायव्वो संपत्ते वारसम्म दियहम्मि । गहिऊण दरिसणीयं संपत्तो राइणो मूलं । । ९॥
संस्कृत छाया
एवं कृतकर्तव्यः सम्प्राप्ते द्वादशे दिवसे ।
गृहीत्वा दर्शनीयं सम्प्राप्तो राज्ञो मूलम् ।।९ ॥
गुजराती अनुवाद
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९. आ प्रमाणे करेला कर्तव्यवालो ते श्रेष्ठि बार में दिवसे भेटणं लई 'राजानी पासे पहोंच्यो..