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तथा सुवर्णना अलङ्कारोनो त्याग करेला राजास जिनबिम्बोनी पूजा करीने, पौषधशालामां जईने विधिवड़े अट्ठमनुं पच्चक्खाण की कुशना संथारामां स्वा रहीने तेणे कहेवानो प्रारंभ कर्यो. (युग्मम्) हिन्दी अनुवाद
ऐसा कहकर समस्त मणि और स्वर्णाभूषणों को त्यागकर श्वेतवस्त्रधारी राजा ने जिनबिम्ब की पूजा कर, पौषधशाला में जाकर विधिपूर्वक अटुं का प्रत्याख्यान कर कुश के संस्तारक पर आसीन होकर कहना प्रारम्भ किया।
गाहा
देवो व दाणवो वा जिण-सासण-भत्ति-संजुओ कोवि ।
जह संनिहिओ सिग्धं आगच्छउ वंछियं देउ ।।४३।। संस्कृत छाया
देवो वा दानवो वा जिनशासनभक्तिसंयुक्तः कोऽपि ।
यथा संनिहितः शीघ्रमागच्छतु वाञ्छितं ददातु ।। ४३ ।। गुजराती अनुवाद
४३. जिनशासन ना प्रत्ये भक्तिवालो कोई पण देव होय के दानव होय जे नजीक होय ते जल्दी आवो अने माळं इच्छित पूर्ण कटो. हिन्दी अनुवाद
जिन शासन के प्रति भक्तिवाला कोई भी देव या दानव जो समीप हो, हमारी इच्छा पूर्ण करे। गाहा
एवं च चिंतयंतो एगते संनिरुद्ध-जण-पसरो। निच्चल-देहो चिट्ठइ राया जा तिन्नि दियहाई ।।४४।। ता रयणि-चरिम-जामे विद्धंसिय-सयल-तिमिर-संघायं ।
भासुर-देहं पुरिसं दटूण विचिंतए राया ।।४५।। संस्कृत छाया
एवञ्च चिन्तयन्नेकान्ते संनिरुद्धजनप्रसरः । निश्चलदेहस्तिष्ठति राजा यावत् त्रिणि दिवसानि ।। ४४ ।। तावद्रजनीचरमयामे विध्वंसितसकलतिमिरसङ्घातम् । भासुरदेहं पुरुषं ष्ट्वा विचिन्तयति राजा ।। ४५ ।। युग्मम् ।।