Book Title: Sramana 2015 04
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 209
________________ हिन्दी अनुवाद इधर-उधर पुत्र को तलाशने पर भी उसे न पाकर हे राजन्! ऐसा लगा जैसे मेरे मस्तक पर किसी ने वज्र से प्रहार किया है। मैं घायल 'धस' करके मूर्च्छित हो गयी। गाहा साहु-धणेसर-विरइय-सुबोह-गाहा-समूह-रम्माए । रागग्गि-दोस-विसहर-पसमण-जल-मंत-भूयाए ।। २४९।। एसोवि परिसमप्पइ कमलावइ-पुत्त-हरण-नामोत्ति । सुरसुंदरि-नामाए कहाइ दसमो परिच्छेओ ।। २५०।। संस्कृत छाया साधुधनेश्वरविरचितसुबोधगाथासमूहरम्यायाः । रागाग्निद्वेषविषधरप्रशमनजलमत्रभूतायाः ।। २४९ ।। एषोऽपि परिसमाप्यते कमलावतीपुत्रहरणनामेति । सुरसुन्दरिनाम्न्याः कथायाः दशमः परिच्छेदः ।। २५० ।। गुजराती अनुवाद २४९-२५०. साधु धनेश्वर वड़े रचायेली सुबोध गाथाना समूह बड़े रग्य, रागामि तेम ज द्वेष छप विषधरने शांत करवा पाणी तेमज मंत्ररूप... 'कमलावती पुत्रहरण' नामनो सुरसुन्दरि नामनी कथानो आ दशमो परिच्छेद समाप्त थयो... इति दशमः परिच्छेदः हिन्दी अनुवाद साधु धनेश्वर द्वारा रचित सुबोध गाथाओं की समूह रूप सुन्दर रागाग्नि और द्वेष रूपी विषधर को शान्त करने वाले जल और मन्त्र रूप कमलावती पुत्रहरण नामक सुरसुन्दरी कथा का दसवां परिच्छेद समाप्त हुआ। दशमः परिच्छेद समाप्तः ।। *****

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