Book Title: Sramana 2015 04
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 207
________________ संस्कृत छाया ततः क्षणान्तरतः प्रतिबुद्धा झटिति मन्दभाग्याऽहम् । केनाऽपि खलल्लपितमेतद् शब्दं श्रुत्वा ।। २४३ ।। गुजराती अनुवाद २४३. (कमलावतीराणी ना पुत्र नु अपहरण) कोइना वडे बोलायेला आ शब्दो सांधलीने मंदभाग्यवाली हुं त्यारबाद क्षणवारमा जागी. हिन्दी अनुवाद किसी के द्वारा बुलाए गये शब्द सुन कर मैं मन्दभाग्यवाली जग गयी। गाहा निउणं जोयंतेणवि पभूय-कालाओ पाव! दिट्ठो सि। काहामि वइर-अंतं अणुहव-दुविहिय-फलमिहि ।। २४४।। संस्कृत छाया निपुणं पश्यताऽपि प्रभूतकालतः पाप ! छटोऽसि । करिष्यामि वैरान्तं, अनुभव दुर्विहितफलमिदानीम् ।। २४४ ।। गुजराती अनुवाद २४४. 'सावधानीपूर्वक जोवा छतां पण हे पापी! तुं घणा समये देखायो छे. हवे वैरनो अंत कटीश. हवे दुष्कृत्यना फळने अनुभव. हिन्दी अनुवाद ___ सावधानी पूर्वक तलाशने पर हे पापी! तूं बहुत समय बाद दिखाई दिया है। अब मैं दुश्मनी का अन्त करूंगा। तूं अब अपने बुरे कर्मों का फल भुगत! गाहा एयं सदं सोच्चा भीया, को एस एवमुल्लवइ? । इय चिंतिय जाव अहं निय-उच्छंगं पलोएमि ।। २४५।। . ता नत्थि तत्थ पुत्तो विचिंतियं ताहि हा! किमेयंति । किं कहवि होज्ज पडिओ अहवा केणावि अवहरिओ? ।। २४६। किंवा सुमिणं एयं किंवा मइ-विन्भमो महं एसो? । एमाइ चिंतयंती गवेसिउं ताहि पारद्धा ।। २४७।।

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