Book Title: Sramana 2015 04
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 206
________________ हिन्दी अनुवाद हे पुत्र! यहाँ तुम्हारा जन्म होने के कारण यह जंगल भी बस्ती के समान है। तुम हमारी गोद में आने के बाद मेरा सम्पूर्ण भय समाप्त हो गया है। गाहा तुह मुह-पलोयणेणं संपन्न-मणोरहा भविस्सामि । रवि-कर-पहयंधयारे जायम्मि दिणम्मि सकयत्था ।। २४१।। संस्कृत छाया तव मुखप्रलोकनेन संपन्नमनोरथा भविष्यामि । रविकरप्रहतान्यकारे जाते दिने सकृतार्था ।। २४१ ।। गुजराती अनुवाद २४१. सूर्यना किरणोथी अंधकार नाश थये छते दिवस उगता तारा मुखने जोवाथी पूर्ण मनोरथवाली हुं कृतार्थ थइ. हिन्दी अनुवाद सूर्य की किरणों से नाश को प्राप्त अंधकार के बाद दिन उगने जैसे तुम्हारा मुख देखकर मेरी सभी इच्छाएं पूरी हो गईं, मैं कृतार्थ हो गयी। गाहा एमाइ भणंतीए पह-सम-खिन्नाए नीसहंगाए । वियणा-विगमाओ तहिं समागया मे तहिं निहा ।।२४२।। संस्कृत छाया एवमादि भणन्त्याः पथश्रमखिन्नया निःसहाङ्गया । वेदनाविगमात्तत्र समागता मां तदा निद्रा ।। २४२ ।। गुजराती अनुवाद २४२. आ प्रमाणे बोलतां मार्गना श्रमना खेदथी असमर्थ अंग थवाथी तथा वेदना दूर थवाथी मने त्यारे निद्रा आवी गई। हिन्दी अनुवाद ऐसा कहते हुए मार्ग में किए गए श्रम के कारण चलने में असमर्थ होने के दुःख की वेदना के दूर हो जाने के कारण मुझे नींद आ गयी। गाहा तत्तो खणंतराओ पडिबुद्धा झत्ति मंद-भग्गा हं । केणावि हु उल्लवियं एयं सहं सुणेऊणं ।। २४३।।

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