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संस्कृत छाया
ततो राज्ञा तेषां शिष्टः सुरदर्शनादिवृत्तान्तः । ...
पूर्वोक्तः सर्वोऽपि खलु स्वप्नोपलम्भावसाने ।। ६९ ।। गुजराती अनुवाद
६१. त्यारे राजास तेओने देवना दर्शनथी प्रारंभीने पूर्वोक्त समस्त वृत्तान्त स्वप्ननी प्राप्ति पर्यन्तनो कहयो. हिन्दी अनुवाद
तब राजा ने उस देवदर्शन की घटना से प्रारम्भ कर स्वप्न पर्यन्त तक की सम्पूर्ण घटना को बताया। गाहा
सम्मं विणिच्छिऊणं सुविण-सरूवं कहेह भो! तत्तं । इय भणिया ते रना अन्नोन्नं जाव चिंतिंति ।।७०।। ताव य धणदेवेणं भणियं नर-नाह! देसु अवहाणं।
सुविण-परमत्थ-जाणण-हेउं निसुणेसु वुत्तुंतं ।।७१।। संस्कृत छाया
सम्यग् विनिचित्य स्वप्नस्वरूपं कथयत भो ! तत्त्वम् । इति भणिता ते राज्ञाऽन्योन्यं यावच्चिन्तयन्ति ।। ७० ।। तावच्चधनदेवेन भणितं नरनाथ ! देहि अवधानम् ।
स्वप्नपरमार्थज्ञानहेतु निशृणुत वृत्तान्तम् ।।७१।।युग्मम्।। गुजराती अनुवाद
60-6१. हे स्वप्नपाठको! तमे सारी ते विचारीने तत्त्व जणावो,' आ प्रमाणे राजा वड़े कहेवायेला तेओ परस्पर ज्यां विचारे छे. तेटलीवारमां धनदेवे का-हे राजन! सावधान छनो. स्वप्नना परमार्थने जाणवा माटे आ वृत्तांत सांभलो... हिन्दी अनुवाद
. राजा ने कहा- हे स्वप्रपाठकों! तुम अच्छी प्रकार विचार कर स्वप्न के तत्त्व को बताओ। राजा के ऐसा कहने पर वे परस्पर विचार करने लगे। तभी धनदेव ने कहा हे राजन्! ध्यान दें। स्वप्न का परमार्थ जानने के लिए यह वृत्तान्त सुनें। युग्मम् ॥