Book Title: Sramana 2015 04
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 191
________________ गाहा तं देव-दिन-कुंडल-पमुहं सव्वंपि नियय-आभरणं । मोत्तूंण अंगुलीयं समप्पियं तस्स वणियस्स ।। २०५।। संस्कृत छाया तद् देवदत्तकुण्डलप्रमुखं सर्वमपि निजकाऽऽभरणम् । मुक्त्वाऽगुलीयं समर्पितं तस्य वणिजस्य ।। १०५।। गुजराती अनुवाद .. २०५. एक मात्र अंगुठी छोडीने देवे आपेल कुंडल विगेरे बधां आधरण ते वाणियाने आफ्या. हिन्दी अनुवाद___ एक मात्र अंगूठी को छोड़कर देव द्वारा दिए गए कुंडल आदि सभी आभूषण उस बनियें को मैंने दिया। गाहा तत्तो सत्येण समं चलिया सिरिदत्त-परियण-समेया। किज्जंत-विविह-विणया वणिएणं, डोलियारूढा ।। २०६।। संस्कृत छाया ततः सार्थेण समं चलिता श्रीदत्तपरिजनसमेता । क्रियमाणविविधविनया वणिजेन, (शिबिका)डोलिकारूढा ।।२०६।। गुजराती अनुवाद २०६. त्यारबाद सार्थनी साथे श्रीदत्तना परिजन साथे हुंचाली, वाणिया वड़े करायेला विविध प्रकारना विनयवाली हुं शिविकामां बेठी! हिन्दी अनुवाद उसके बाद कारवां (सार्थ) और श्रीदत्त के परिजनों के साथ मैं चली। बनियें द्वारा किये गए विभिन्न प्रकार की विनय वाली मैं डोली में बैठी। गाहा सोवि हु सत्थो जाव य लहुय-पयाणेहिं वयइ अणुदियहं । कइवय-पयाणगाई ता एग-दिणम्मि अडवीए ।। २०७।।

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