Book Title: Sramana 2015 04
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 190
________________ हिन्दी अनुवाद__हस्तिनापुर नगर दूर है। वहां जाने का रास्ता खतरनाक प्राणियों और चोरों के कारण दुर्गम है। कुशाग्रनगर नजदीक है। तो हे बहन! अब तुम्हें क्या करना है? गाहा तत्तो य मए भणियं कुसग्गनयरम्मि वच्चिमो ताव । पेच्छामि बंधु-वग्गं पभूय-कालाओ सिरिदत्त!।। २०३।। संस्कृत छाया ततश्च मया भणितं कुशाग्रनगरे व्रजावस्तावत् । प्रेक्षे बन्युवर्ग प्रभूतकालात् श्रीदत ! ।। २०३ ।। गुजराती अनुवाद २०३. त्यारे में कहयुं हे श्रीदत्त! हमणा कुशायनगरमा जइस घणा वखते बंधुवर्गने जोइशा... हिन्दी अनुवाद तब मैंने कहा हे श्रीदत्त! अभी कुशाग्रनगर में चलेंगे और वहाँ काफी लम्बे समय से मिले भाइयों से मिलेंगे। गाहा अह तेण सहरिसेणं नीया सत्यम्मि नियय-आवासे । विणओवयार-पुव्वं च कारिया सयल-देह-ठिई ।।२०४।। संस्कृत छाया अथ तेन सहर्षेण नीता सार्थे निजकावासे । विनयोपचारपूर्वं च कारिता सकलदेहस्थितिः ।। २०४ ।। गुजराती अनुवाद ___२०४. हवे श्रीदत्त हर्षपूर्वक मने सार्थमां पोताना आवासमां लई गयो, अने विनय-उपचार पूर्वक समस्त शरीरनी सारवार करावी। हिन्दी अनुवाद तब श्रीदत्त खुशी-खुशी मुझे अपने आवास में ले गया और विनय तथा उपचार पूर्वक शरीर की सेवा सुश्रुषा की।

Loading...

Page Navigation
1 ... 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210