Book Title: Sramana 2015 04
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 188
________________ संस्कृत छाया परिजानासि भगिनि ! मां श्रीदत्तोऽहं कुशाग्रनगरात् । आसं गतः परविषये वणिज्यबुद्धया सार्थयुतः ।। १९८ ।। गुजराती अनुवाद १९८. हे भगिनी ! मने ओलखे छे? कुशाग्रनगर थी आवेलो श्रीदत्त छु- व्यापार माटे सार्थनी साये अन्यदेशमां गयो हतो. हिन्दी अनुवाद हे भगिनी ! मुझे पहचानती हो ? मैं कुशाग्र नगर से आया हुआ श्रीदत्त हूँ। सार्थ के साथ व्यापार के लिए मैं अन्य देश में गया था। गाहा बारसम-वच्छराओ पुणरवि चलिओ पुरम्मि निययम्मि । सत्येण समं इण्हिं संपत्तो इह पएसम्मि । । १९९ ।। संस्कृत छाया द्वादशवत्सरात् पुनरपि चलितः पुरे निजे । सार्थेण सममिदानीं सम्प्राप्त इह प्रदेशे ।। ९९९ ।। गुजराती अनुवाद १९९. चार वर्ष बाद हवे पाछो पोताना नगर तरफ चालेलो सार्थनी साथै हालमां आ प्रदेशमां आव्यो । हिन्दी अनुवाद सार्थ के साथ बारह वर्षों पश्चात् अपने नगर की तरफ वापस आने पर हाल ही में इस प्रदेश में आया हूँ। गाहा ता भगिण! केण विहिणा जाया एगागिणी तुमं एत्थ ? । इय भणिया तेण अहं विगय- भया झत्ति संजाया ।। २०० ।। संस्कृत छाया तस्माद् भगिनि ! केन विधिना जातैकाकिनी त्वमत्र ? | इति भणिता तेनाऽहं विगतभया झटिति सञ्जाता ।। २०० ।।

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