Book Title: Sramana 2015 04
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 192
________________ संस्कृत छाया सोऽपि खलु सार्थो यावच्च लघुकप्रयाणै र्व्रजत्यनुदिवसम् । कतिपयप्रयाणकानि तावदेकदिनेऽटव्याम् ।। २०७ ।। गुजराती अनुवाद २०७. ते सार्थ पण जल्दी प्रयाण करवा पूर्वक दररोज आगल चाले छे. आम केटलाक प्रयाणी द्वारा एक दिवस जंगलमां आंव्यो । हिन्दी अनुवाद वह कारवाँ भी शीघ्रता से प्रतिदिन आगे आगे चलता रहा। इस प्रकार कई दिन चलने के बाद एक दिन जंगल में आया। गाहा अवसउणेणं थक्को दियहे दियहे न जायए सउणं । जाव य दिवड - मासे वोलीणे सव्व-सत्थिल्ला ।। २०८ ।। संबल-रहिया तहइं ठाउमसत्ता तओ समुच्चलिया । अवगन्निय अवसउणं निय-पुर-गमणस्स तुरमाणा ।। २०९ ।। संस्कृत छाया अपशकुनेन स्थितो दिवसे दिवसे न जायते शकुनम् । यावच्च द्वयार्धमासेऽतिक्रान्ते सर्वसार्थिकाः ।। २०८ ।। शम्बलरहितास्तत्र स्थातुमशक्तास्ततः समुच्चलिताः । अवगणय्य अपशकुनं निजपुरगमनस्य त्वरमाणाः ।। २०९ ।। युग्मम् गुजराती अनुवाद २०८. अपशुकन थवाथी सार्थ रोकाई गयो. दिवसोना दिवसो गया पण शुकन न था. सार्थना बधा लोकोए दोढमास जेटलो समय त्यां पसार कर्यो पण भाथु खलास थई जवा थी त्यां रहेवा असमर्थ एवा तेओ अपशुकननी अवगणना करीने पोतानां नगरमां जवानी उतावला करतां त्यांथी चाल्या. हिन्दी अनुवाद अपशकुन होने से कारवां को रोक लिए गया। कई दिन बीत गए पर शकुन नहीं हुआ। कारवां के सभी लोग पन्द्रह दिन तक वहाँ रहे किन्तु रास्ते का भोजन

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