Book Title: Sramana 2015 04
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 195
________________ संस्कृत छाया भयकम्पमानशरीरा तदा एकां दिशं गृहीत्वा । सजातदिग्मोहा चलिता तरुगहनमध्येन ।। २१५ ।। गुजराती अनुवाद २१५. (सार्थथी विखूटी पडेली राणी) भयंकर कंपता शरीरवाली त्यारे ते दिशाने लक्ष्यकरीने दिशाथी मोहित थयेली वृक्षोना गहन भागनी मध्यमांथी पसार थई। हिन्दी अनुवाद — जोर से कांपती मैं तब उस दिशा को लक्ष्य कर जैसे उस दिशा से मोहित हो गयी हूँ, घने वृक्षों के बीच में आ गई। गाहा दूरं गंतूण पुणो वलिया वच्चामि पिट्ठओहुत्तं । सिरिदत्त-जण-गवेसण-परायणा तत्थ वण-गहणे ।। २१६।। संस्कृत छाया दूरं गत्वा पुनर्वलिता व्रजामि पृष्ठतोमुखम् । श्रीदत्तजनगवेषणपरायणा तत्र वनगहने ।। २१६ ।। गुजराती अनुवाद २१६. श्रीदत्तना माणसोने शोधवान्मां लागेली दूर जइने फटी पाछी वली. अने ते भयंकर अटवीमां फटी आगल चाली. हिन्दी अनुवाद श्रीदत्त के लोगों को ढूढ़ती हुई दूर जाकर पुन: पीछे आई और उस भयंकर जंगल में फिर से आगे बढ़ी। गाहा अह भय-तरलच्छीए इओ तओ तत्थ परिभमंतीए । उम्मग्ग-गमण-भज्जंत-कंटयाइन्न-चरणाए ।। २१७।। पह-सम-सुढियाइ दढं पए पए नीसहं कणंतीए । वसिमन्नेसण-हेडं चडिऊण थलम्मि एगम्मि ।। २१८।। जा पुलइयं समंता ताव न दीसइ कहंपि वसिमंति । वियरंत-वाल-निवहा समंतओ भीसणा अडवी ।। २१९।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210