Book Title: Sramana 2015 04
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 182
________________ गाहा अविय। फुरंत मणि- जालयं तरंत टिट्टिभालयं । रहंग - पंति- मंडियं विहंग - सत्थ- वडुयं ।। १८५ ।। अपि च ।। संस्कृत छाया स्फुरद्मणिजालकं तरत्टिट्टिभालयम् । रथाङ्गपङिक्तमण्डितं विहङ्गसार्थवडुयं (व्याप्तम्) ।। १८५ ।। गुजराती अनुवाद १८५. अने वली स्फुरायमान मणीनी जाल जेवुं, तरता टिट्टिभ (तितली) नुं जाणे घर चक्रवाकनी पंक्तिथी शोभतुं, पक्षीओना समूह थी व्याप्त. हिन्दी अनुवाद तेजवाले मणि से शोभित तथा जिसमें तैरते हुए टिट्टिभ (तितली) प्रकाशित मणियों के जाल की तरह शोभित है जो पक्षिओं के समूह से व्याप्त है तथा जिसमें चक्रवाक पक्षी की कतारें शोभित हो रही हैं। गाहा भमंत - भूरि- गोहियं सरोरुहालि - सोहियं । अणेग-सावयाउलं झसोह- लुद्ध - साउलं ।। १८६।। संस्कृत छाया भ्रमद्भूरिगोधिकं सरोरुहालिशोभितम् । अनेकश्वापदाकुलं झषौघलुब्धसङ्कुलम् ।। १८६ ।। गुजराती अनुवाद १८६. भमती मोटी गोधाओयुक्त, कमळोनी श्रेणीथी शोभतुं, अनेक दुष्ट प्राणी ओथी व्याप्त, माछलीओना समुदायमां लुब्ध शिकारीओ थी व्याप्त. हिन्दी अनुवाद जिसमें विशेष प्रकार के बड़े जीव टहल रहे थे, जो कमल की पंक्तियों से शोभित है, जिसमें अनेक दुष्ट जीव हैं तथा जो मछली मारने वाले शिकारियों से व्याप्त है।

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