Book Title: Sramana 2015 04
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 152
________________ हिन्दी अनुवाद राजा भी सब प्रयास कर उस श्रेष्ठ हाथी को वश में करने में समर्थ नहीं हो सके। देवी ने कहा यह हाथी उन्मत्त हो गया है, इस अतिवेग वाले हाथी को रोकना सम्भव नहीं है। इसलिए हमें किसी प्रकार हाथी से नीचे उतरना चाहिए, नहीं तो हम स्वयं परेशानी में पड़ जायेंगे। गाहा कमलावईए भणियं ओयरियव्वं कहं नु नर-नाह! । रन्ना भणियं निसुणसु पिच्छसि वड-पायवं पुरओ ।।१११।। एयस्स य हेतुणं जाही हत्थी तओ तुमे देवि! । साहाए लग्गिअव्वं सहसा हत्थिं पमोत्तूण ।।११२।। संस्कृत छाया कमलावत्या भणितमवतरितव्यं कथन्नु नरनाथ ! । राज्ञा भणितं निश्रृणु प्रेक्षसे वटपादपं पुरतः ।। १११ ।। एतस्य चाऽधः यास्यति हस्ती ततस्त्वया देवि । शाखायां लगितव्यं सहसा हस्तिनं प्रमुच्य ।। ११२ ।। गुजराती अनुवाद १११-११२. राणी कमलावतीस कह्यु- हे राजन्! केवी रीते उतरवू? त्यारे राजार का-सांधल! आगल वटवृक्ष देखाय छे. हे देवि! ते वृक्षनी नीचेथी हाथी पसार थशे त्यारे एकदम हाथीने छोड़ीने डाली पकडी लेवी। हिन्दी अनुवाद रानी कमलावती ने कहा हे राजन! मैं किस प्रकार उतरूं? राजा ने कहा सुनो। आगे बरगद का पेड़ दिख रहा है ज्योंही हाथी पेड़ के नीचे से गुजरे, हाथी को छोड़कर पेड़ की डाली को पकड़ लेना। गाहा एवं च जाव राया देविं उल्लवइ ताव सो हत्थी। अइवेगेणं पत्तो वड-वायव-हिट्ठ-भूभागे ।।११३।। संस्कृत छाया एवं च यावद्राजा देवीमुल्लपति तावत् स हस्ती । अतिवेगेन प्राप्तो वटपादपाधोभूभागे ।। ११३ ।।

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