Book Title: Sramana 2015 04
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 157
________________ ता अन्न-दिणे सिन्नं समरप्पिय-समुहमागयं सहसा । दीणं विमणं खिन्नं लज्जा-विमणंत-मुह-कमलं ।।१२४।। संस्कृत छाया परित्यक्तराज्यचित्तस्तिष्ठति यावत् कत्यपि तत्र दिवसानि । कमलावतीसम्प्रापणाऽऽशया घृतनिजजीवितः ।। १२३ ।। तस्मादन्यदिने सैन्यं समरप्रियप्रमुखमागतं सहसा । दीनं विमनः खिन्नं लज्जाविनतमुखकमलम् ।। १२४।।युग्मम् ।। गुजराती अनुवाद १२३-१२४. (महाराणीनी शोध छतां अप्राप्ति) राज्यने विषे विमनस्क, कमलावती राणीने प्राप्तिनी आशा बड़े पोताना जीवने धारण करतो राजा केटलां दिवस त्यां रहयो, त्यां एक दिवस ओचीतु दीन, विमन, खेद पामेलु, तथा लज्जाथी नमेलां मुखकम्पलवालुं समरप्रियनी मुख्यतावालु, सैन्य आवी गा... (युग्मम्) हिन्दी अनुवाद कमला रानी मिलेगी, ऐसी आशा में जीवित राज्य के विषय में अन्यमनस्क राजा कुछ दिनों तक वहाँ रहे। तभी एक दिन अचानक वहाँ दीन, बिना मन के, दुःखी तथा लज्जा से झुके मुखकमल वाला समरप्रिय प्रमुख सैनिक आया..(युग्मम) गाहा अह रन्ना आपुट्ठो समरप्पिओ कहसु भह! वुत्तंतं । किं दिट्ठो दुट्ठ-करी देवीवि विमोइया तत्तो? ।।१२५।। संस्कृत छाया__अथ राज्ञाऽऽपृष्टः समरप्रियः कथय भद्र ! वृत्तान्तम् । किं छटो दुष्टकरी देव्यपि विमोचिता ततः ? ।। १२५ ।। गुजराती अनुवाद १२५. त्यारे राजार समरप्रियने पूछयु 'हे भद्र! वृत्तांत जणाव शुं दुष्ट हाथी जोवायो? ते हाथी पासेथी देवी ने छोडावी?... हिन्दी अनुवाद तब राजा ने समरप्रिय से पूछा क्या वह दुष्ट हाथी मिला? उस हाथी के पास से देवी को छुड़ाया क्या?

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