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संस्कृत छाया- सुश्लिष्टो नन्वर्थो निरूपितो राजन् ! वणिजपुत्रेण ।
सर्वेषामस्माकमपि सुसम्मतवैष इति ।। ८२ ।। गुजराती अनुवाद
८२. परंतु हे राजन! वणिकपुत्र धनदेव वड़े आ स्वप्ननो अर्थ सारी रीते कहेवायो छे. अमने सर्वने पण ते मान्य छे. हिन्दी अनुवाद
परन्तु हे राजन्! वणिक पुत्र धनदेव द्वारा इस स्वप्न का अर्थ ठीक प्रकार से किया गया है, और यह हम सभी को मान्य है।
गाहा
इय भणिए ते रन्ना तंबोल-पयाण-पुव्ययं सव्वे ।
पट्टविया तह सव्वे सामंत-महंतमाईया ।।८३।। संस्कृत छाया
इति भणिते ते राज्ञा ताम्बूलप्रदानपूर्वकं सर्वे ।
प्रस्थापिता तथा सर्वे सामन्तमहत्तमादिकाः ।। ८३ ।। गुजराती अनुवाद
८३. आ प्रमाणे कहेवाये छते स्वप्न पाठको तथा सामंत-महंतादिओने तंबोल-पानवीडु आपवा पूर्वक राजास विदाय आपी. हिन्दी अनुवाद
ऐसा कहकर राजा ने सभी स्वप्नपाठकों तथा सामन्तों आदि को ताम्बूल अर्पण कर विदा किया। गाहा
तत्तो रन्ना भणियं इण्डिं धणदेव! किमिह कायव्वं ।
देवीइ समं अम्हं उवट्ठिए दुसह-विरहम्मि ।।८४।। संस्कृत छाया
ततो राज्ञा भणितमिदानीं धनदेव ! किमिह कर्तव्यम् । देव्या सममस्माकमुपस्थिते दुःसहविरहे ।। ८४ ।।