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संस्कृत.छाया
गृहाण कुण्डलयुगलं नरेन्द्र ! एतत्ततस्तु देव्याः ।
यस्या इच्छसि पुत्रं दातव्यं तस्यै आभरणम् ।। ५५ ।। गुजराती अनुवाद
५५. (देव द्वारा कुंडलयुगल प्रदान)
तेथी हे राजा! आ कुंडल युगलने ग्रहण कर. तथा जे देवीथी तुं पुत्रने इच्छे छे तेने आ आधरण आप. हिन्दी अनुवाद
(देव द्वारा कुंडल युगल प्रदान) इसलिए हे राजा! यह कुण्डल युगल ग्रहण करें और जिस देवी के पुत्र रूप में जन्म लेना चाहते हों, उसे ही यह आभूषण दें। गाहा
इय भणिउं कन्नाणं उत्तारिय कुंडलाइं दिव्वाइं।
रन्नो समप्पिऊणं देवो अईसणीभूओ ।।५६।। संस्कृत छाया
इति भणित्वा कर्णाभ्यामुत्तार्य कुण्डले दिव्ये ।।
राज्ञे समर्प्य देवोऽदर्शनीभूतः ।। ५६ ।। गुजराती अनुवाद
५६. आ प्रमाणे कहीने कमांथी चे दिव्य कुंडल उतारी राजाने आपी देव अदृश्य थयो. हिन्दी अनुवाद
यह कहकर अपने कान से दो दिव्य कंडल उतार कर राजा को दिया और देव अन्तर्ध्यान हो गया। गाहा
रन्नावि रयणि-विरमे गंतुं देवीए वियसिय-मुहेण
सुर-दंसणाइ सव्वो वुत्तंतो साहिओ तत्तो ।।५७। संस्कृत छाया
राज्ञाऽपि रजनीविरमे गत्वा देव्या विकसितमुखेन । सुरदर्शनादिः सर्दो वृत्तान्तः कथितस्ततः ।। ५७ ।।